Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्राचीदिनर्तकी-व्योमवंशाग्रमधिरोहति। कृतरक्ताम्बराशीष न्यस्तार्कस्वर्णकुम्भभृत् ॥
-उद्गच्छत्सूर्यबिम्बाष्टकम् (१,५,७) वीरस धनुष चढ़ावीयो समति प्रत्यंचा चाढ़ी रे। धीरज मूठ काढ़ी ग्रही, सत्यसं वींटी गाढ़ी रे।। बारभेद तप बाण सुं कर्म कंचुक नै भेदी रे। मुनि आतमरूप शत्रु ने जीपै जिनमत वेदी रे॥
- चार प्रत्येक-बुद्ध चौपाई (३.१.११-१२) तिमिर करीनइ स्याम वदन थइ रे, दिसबधु दुख प्रमाणि। कुमर वियोगइ लोक दुखी घणुं रे, ते देखि नइ जाणि ॥
- सीताराम-चौपाई (२.६.११) ससि दल भालि जीतउ थकउ रे, सेवइ ईसर देव रे। गंगा तटि तपस्या करइ रे लाल, चिंतातुर नितमेव रे॥ नयन कमल नी पांखडी रे, अणिआली अनुरूप रे। हठि वधती हटकी रही रे लाल, देखि श्रवण दो कूप रे॥
- मृगावती-चरित्र चौपाई (१.३.७-८) पदक प्रियु तउ हूँ मोतिन माला, हीरउ तउ हूँ मूंदरडी रे बहिनी। चन्द्र प्रियु तउ हूँ रोहिणी थाऊँ, चन्दन मलय डूंगरडी रे बहिनी॥
- श्री नेमिनाथ गीतम् (२) आंबउ प्रीतम माहरउ, फूलफलादिक राज। फल सवाद ते भोगरस, भ्रमर समान समाज॥ राज सरिखउ कूबर हुयउ, राज भ्रंश उनमूल। प्रिय विणु हूँ धरती पड़ी, देव थयउ प्रतिकूल ॥
- नलदवदन्ती-रास (३.२, दूहा १-२) २.९ उदाहरणालङ्कार
प्रस्तुत अलङ्कार में पहले साधारण रूप से कोई बात कह दी जाती है और फिर उसे बोधगम्य बनाने के लिए उसका स्पष्टीकरण किया जाता है। कवि ने अपने साहित्य को अनेक स्थलों पर उक्त अलङ्कार से अलंकृत किया है। जैसे -
लखमी पामी न लोभ कीजै, दीधो आवै साथि रे। समयसुन्दर कहै नहीं तर, माखी ज्यु घसे हाथ रे॥
-चम्पक-श्रेष्ठी चौपाई (१.९.२२) इस पद्य में कृपण के प्रति कवि का सदुपदेश है कि अवसर पर अपने धन का
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