Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
४४७ चर्चा की जाए, तो अनावश्यक विस्तार हो जाएगा। उदाहरण के लिए कुछ मुहावरे-प्रयोग प्रस्तुत किये जा रहे हैं -
__ माल मलूक महल मन हरणा। मुग्ध कर लेने की अभिव्यंजना के लिए 'मन हरना' मुहावरा अधिक प्रभावपूर्ण है। इसी प्रकार -
कीरति कारण उपगरण मांड्यउ, लाख लोक घरि लँटइ।
सम्पत्ति लूटने के लिए 'घरि लूंटइ' (घर लूटना) मुहावरा-प्रयोग है। पुनर्यथा -
मनुष्य जन्म नवि हारो आल, तमे पाणी पहली बांधो पाल।३
यहाँ कवि कहना चाह रहे हैं कि जीवन को व्यर्थ में मत गमाओ। मृत्यु आने से पूर्व कुछ करणीय कार्य कर लो। इस अभिव्यक्ति के लिए 'जन्म हारना' और पानी आने से पहले 'पुल अथवा बांध बांधना' मुहावरे का प्रयोग अधिक सटीक बना है।
इसी तरह 'मनोरथ माहरउ फलीजो'४ (मनोरथ फलना), हीयडइ दुक्ख न मायो५, मन तरसई, खरो शास्त्र खोटो कीयो", परचा दादो पूरवे (परचा पूरना-मनोवांछित सिद्ध करना) आदि मुहावरा-प्रयोग भी उल्लेखनीय हैं।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि कविवर समयसुन्दर के साहित्य में कहावतों तथा मुहावरों का बाहुल्य है। उनकी कहावतों से उनके साहित्य का सांस्कृतिक पक्ष भी उद्घाटित होता है और मुहावरों से लक्षणा शब्द-शक्ति; क्योंकि मुहावरे लक्षणा पर ही आधारित होते हैं।
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१. वही, अंतसमये जीव निर्जरा गीतम् (४) २. वही, हित शिक्षा गीतम् (५) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, व्रत पच्चक्खाण गीतम् (१०) ४. वही, मनोरथ गीतम् (८) ५. मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.७.२) ६. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री नेमिनाथ फाग (७) ७. वही, सत्यासिया दुष्काल वर्णन छत्तीसी (२) ८. वही, वही देरावर-मण्डण जिनकुशलसूरि गीतम् (१)
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