Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ५.२.२८७ सोभागि सुन्दर तुम बिन घड़ीय न जाय।
- सीताराम-चौपाई (१.३) ५.२.२८८ सोभागी सुन्दर भाव वडउ संसारि।
- पौषध-विधि गीतम् (३) ५.२.२८९ सोरठ देस सोहामणउ साहेलड़ी ऐ देवा तणउ निवास।
- सीताराम-चौपाई (१.३) ५.२.२९० सोहला-नी।
- पुण्यसार-चौपाई (७); द्रौपदी-चौपाई(१.८,३४) ५.२.२९१ हरिया मन लागो।
- सीताराम-चौपाई (४.४); द्रौपदी-चौपाई (१.११);
- मृगावती-चरित्र-चौपाई(१.१०) ५.२.२९२ हांजरा री।
- नलदवदन्ती-रास (४.१) ५.२.२९३ हाथीयांरइ हलकइ आवे महारइ प्राहणउ रे।
- नलदवदन्ती-रास (५.२) ५.२.२९४ हिव करकण्डु आवीयउ जी।
- धनदत्त-चौपाई (४); द्रौपदी-चौपाई (१.४); साधुवन्दना-रास (२) ५.२.२९५ हिव रानी पद्मावती।
- धनदत्त-चौपाई (७) ५.२.२९६ हिव श्री चंद सकल वन जोतुं ।
- सीताराम-चौपाई (४.४) ५.२.२९७ हीडोलना-नी।
- श्री जिनचन्द्रसूरि हीडोलणा गीतम् ५.२.२९८ हुं वारी लाल नी।
- वल्कलचीरी-रास (२) ५.२.२९९ हो रंग लीयां हो रंग लीयां नणद।
- सीताराम-चौपाई (७.२) ५.२.३०० हो संग्राम राम नइ रावण मंडाया।
- द्रौपदी-चौपाई (३.१) इस प्रकार हम देखते हैं कि महाकवि समयसुन्दर का गेय-साहित्य रागों और देशियों का एक वृहत कोश' है। उनके गेय-साहित्य में पूर्णत: प्रवाहशीलता है। रागों में संगीत-शैली की जहाँ गंभीरता एवं संयतता है, वहीं देशी में स्वर-वैचित्र्य एवं चपलता
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