Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
१.६३ शील
१.६४ संगति
(ख) खरच कोई लागस्यै नहीं, देह में नहिं दुख । पण मन वैरागे वालजे, सही पामिस सुख ॥ १
कल्पवृक्ष ए शील कहियइ, रोप्यउ श्री जिनराज रे । वाड़ रक्षा भणी भाखी, सेवज्यो सुखकाज रे ॥ २
१.६९ साधु
संगत तेसुं कीजिये, जल सरिखा हुवे जेह | आवटणुं आपणि सहै, दूध न दाझण देह ॥ २
१.६५ संघ
संघ गिरुयउ रे, श्री संघ गुणे करि गिरुयउ रे । मात-पिता सरिखउ हित वल्लभ, किमही करई नहीं विरुयउ रे । समयसुन्दर कहइ श्री संघ सोहइ, वाड़ी माहे जिम मरुयउ रे ॥ * १.६६ संयम-मार्ग
संयममार्गोऽति दुःखकरोऽस्ति ।
१.६७ सती
केसर केस मणि सापनी रे, कृपण तणउ धन जेम । जीवतां हाथ पडइ नहीं रे, सतीय पयोहर तेम ॥ ६
१.६८ सांसारिक सुख
अति तुच्छ सुख संसार नो, मधु लिप्त खड़ग नी धार । किंपाक ना फल सारिखा, द्य दुख अनेक प्रकार ॥
ध्यान धरता साधुनउ, चोखउ थायइ चित्त । जीभ थायइ गुण जोड़तां, सुणितां कांन पवित्त ॥'
१. वही, आलोयणा - छत्तीसी (३५)
२. वही, नववाड़शील गीतम् (११)
३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नेमिजिनस्तवनम् (२)
४. वही, श्री संघगुण गीतम् (१,३)
५. कालिकाचार्य - कथा, पृष्ठ २०१
६. नलदवदन्ती - रास ( २.३.५)
७. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, जीव- प्रतिबोध गीतम् (६)
८. साधु- वन्दना - रास (८)
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