Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व है। उनके रागों की तुलना यदि सरिता के धीर, गम्भीर और प्रशान्त प्रवाह से की जाये, तो देशी की तुलना पहाड़ी प्रदेशों में उन्मुक्त रूप से प्रवाहित कल-कल करते हुए छोटे-छोटे झरनों से की जा सकती है। इस तरह कवि ने अपने गेय-साहित्य का निर्माण राग और देशी की दोहरी प्रक्रिया से किया है। उनके द्वारा गृहीत एवं निर्मापित देशियों की टेरपंक्तियों को रहस्यवादी कवि आनन्दघन, कवि ऋषभदास, नयसुन्दर प्रभृति अनेक परवर्ती कवियों ने व्यवहत किया है। मोहनलाल दलीचन्द देसाई का कथन है, 'यह कहा जाता है कि गूर्जर-साहित्य में कवि प्रेमानन्द ने गूर्जर-भूमि के ही वृत्त-संतानों-गुजराती रागों जैसे मारु, रामेरी, रामग्री आदि देशी रागों का बहुत खुलकर उपयोग किया है, परन्तु यहाँ मैं यह कहूँगा कि कवि समयसुन्दर ने उनसे पहले ही देशी रागों को अति विस्तृत प्रमाण में अपनी सर्व कृतियों में व्यवहृत किया है। समयसुन्दर तो देशी एवं रागों के मार्मिक ज्ञाता एवं प्रयोक्ता थे और उनका प्रयोग कर जो सुन्दर काव्य रचे, वे यहाँ तक प्रसिद्ध हो गये थे कि न केवल उनके पश्चात् होने वाले, अपितु नयसुन्दर और ऋषभदास जैसे उनके समकालीन समर्थ जैन कवियों ने भी समयसुन्दर के काव्यों की देशियों को उद्धृत कर उन देशियों में अपनी कविताएँ रची हैं। १
खण्ड ख १. सूक्त/सुभाषित
'सूक्तं-शोभनोक्तिविशिष्टम-अर्थात् विशिष्ट रूप में सुशोभन कथन ही सूक्ति है, जिनमें किसी सामान्य सत्य की सारगर्भित अभिव्यक्ति होती है। सूक्तियों का महत्त्व सार्वभौमिक रहा है। सूक्तियों के श्रवण या पठन से मात्र मन ही प्रकाशित नहीं होता, अपितु मस्तिष्क भी प्रकाशित होता है। अत: इनका सम्बन्ध हृदय और बुद्धि- दोनों से है। १. एवु कहेवामां आवे छे के गूर्जर साहित्य मां कवि प्रेमानन्दे गूर्जरभूमिनां ज वृत्तसन्तानो
-गुजराती रागो जेवा के मारु, रामेरी, रामग्री आदि देशी रागो नो बह छूट थी उपयोग यो छे, परन्तु अत्रे मने कहेवा द्यो के तेमना पूरोगामी आ समयसुन्दरे तेमनी पहेलां ज देशी रागो ने अति विस्तृत प्रमाणमां पोतानी सर्व कृतिओमां वापर्या छे, समयसुन्दर तो देशी रागो-ढालो-देशीओना मार्मिक जाणकार अने वापरनार हता, अने ओ वापरी जे सुन्दर काव्यो रचना ते एटले दरजे सुधी प्रसिद्ध थई गया हतां के तेमना पछीना ज नहीं पण नयसुन्दर अने ऋषभदास जेवा तेमना समकालीन समर्थ जैन कविओए पण समयसुन्दरनां काव्योनी देशीओ टांकी ते-ते देशी ढालोमां पोतानी कविताओ रची छे।
- आनंदकाव्य-महोदधि, मौक्तिक ७ मुं, कविवर समयसुन्दर, पृष्ठ ५५-५६ २. शब्दकल्पद्रुमः, भाग-५, पृष्ठ १८९
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