Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व १.१८ क्षणभंगुरता (क) राति दिवस जे जायई छई, पाछा नावइ तेहो जी।
खिण खिण त्रूटइं आउखुं, खीण पडइ वलि देहो जी॥ - (ख) खिण खिण इन्द्रिय बल घटइ, खिण खिण टूटै आय।
वृद्ध पणइ परवश पड्या, कहि किम धर्म कराय॥२ १.१९ क्षमा
आदर जीव क्षमा गुण आदर, म करि राग नइ द्वेष जी।
समताये शिव सुख पामीजे, क्रोध कुगति विशेष जी ॥३ १.२० क्रोध
क्रोध करता तप जप कीधा, न पड़इ कांइ ठाम जी।
आप तपै पर नई संतापइ, क्रोध सुं केहो काम जी॥४ १.२१ गुरु (क) बलिहारी गुरु वयणडे, बलिहारी गुरु मुख चंद रे।
बलिहारी गुरु नयणड़े, पेखहतां परमाणंद रे ॥५ (ख) गुरु दीवउ गुरु चंद्रमा रे, गुरु देखाड़इ वाट ।
गुरु उपगारी गुरु बड़ा रे , गुरु उतारइ घाट ॥६ १.२२ चौर्यकर्म
परधन चोऱ्या लुटिया, पाइयउ ध्रसकउ पेट।
भूख्यो भमि संसार मां, निर्धन थकउ नेट ॥" १.२३ जिनधर्म
श्री जिनधर्म सुरतरु समो, जेहनी शीतल छांहि । समयसुन्दर कहइ सेवता, मुक्ति तणां फल पाहि॥
१. वही, श्री आदीश्वर ९८ पुत्र प्रतिबोध गीतम् (६) २. वही, जीव प्रतिबोध गीतम् (२) ३. वही, क्षमा छत्तीसी (१) ४. वही, क्षमा छत्तीसी (३२) ५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, बधावा गीतम् (४) ६. वही, श्री जिनसिंह पूरि गीतम् (५) ७. वही, आलोयणा छत्तीसी (६) ८. वही, धर्ममहिमा छत्तीसी (६)
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