Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
३९७ इह वीस जिनवर भुवन दिनकर, विहरमान जिनेसरा। नियनाम माय सुताय लांछन, सहित हित परमेसरा॥ जिनचंद्रसूरि विनेय पण्डित, सकलचन्द महामुणी।
तसु सीस वाचक समयसुन्दर, संथुण्या त्रिभुवन धणी॥१ ४.३० गीता
इसमें १४ वीं, १६ वीं मात्रा पर विराम के साथ २८ मात्राएँ होती हैं। अन्त में । ऽ या रगण (515) रहता है। उदाहरणार्थ - १६
१२ र. = २८ मात्रा ।।ऽ ।ऽ। ।। 55; ।।ऽ ऽ ऽ ।ऽ
सिरिवंत साहि सुतन्न माता सिरिया देवी नंदणो। वइरागि लहुवय लिद्ध संजम, भविय जण आणंदणो। शुभ भाव समकित, ध्यान समरण, पंच श्री परमिट्ठओ।
सो गुरु श्री जिनचंदसूरि, धन नयणे दिट्ठओ। ४.३१ मरहट्ठा माधवी
इस वृत्त में १६-१३ पर विश्राम के साथ २९ मात्राएँ होती हैं। अन्त में । ऽ रहता है। इसका निर्माण चौपाई और उल्लाला के चरणों के मेल से होता है। इस वृत्त का उदाहरण इस प्रकार है - १६
१३ ल० गु० ऽ ।। ।। ।। ।। ; 5 15 ऽ । ऽ । ऽ = २९ मात्रा
सोवनकार करी अतिवेदन, वाघ्र सुं वीट्युं सीस जी। मेतारज मुनि मुगते पहुँता, उपशम एह जगीश जी॥ कुरुड़ अकुरुड़ बे साधु कहाता, रह्या कुणाला खाल जी।
क्रोध करी कुगते ते पहुँता, जन्म गमायो आल जी॥३ ४.३२ दोहा
दोहे के विषम चरणों में १३-१३ और सम में ११-११ मात्राएँ होती हैं। अन्त में ऽ । रहता है। यथा -
थण मुखि श्याम पणो थयो, गरु नितंब गति मंद।
नयन सनेहाला थया, मुखि अमृत रस विंद॥४ १. वही, वीस विहरमान जिनस्तवनम् (कलश, २३) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, यु० जिनचन्द्रसूरि गीतम् (४) ३. वही, क्षमा-छत्तीसी (६-७) ४. सीताराम-चौपाई (८.४, दूहा २)
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