Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 431
________________ ४१६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ५.२.१५२ पहिलं परणाम वारं जिनराय। - मृगावती-चरित्र-चौपाई (३.१) ५.२.१५३ पाइल री। - सिंहलसुत-चौपाई (२) ५.२.१५४ पाछी नइ वउ लावे रावण जानकी रे। -नलदवदन्ती-रास (६.२) ५.२.१५५ पाय पणमी रे जिणवर नइ सुपसाउलइ। - श्री ज्ञानपंचमी वृहत्स्तवनम् (३) ५.२.१५६ पास जिणंद जुहारियई। - गौतमपृच्छा चौपाई (५); दानशीलतपभाव-संवाद-शतक (२); साधु-वन्दना-रास (१८); द्रौपदी-चौपाई (३.६); सीताराम-चौपाई (९.७); केशी-प्रदेशी प्रबन्ध (४) ५.२.१५७ पियु चले परदेस, सबइं गुण ले चले। - नलदवदन्ती-रास (३.३) ५.२.१५८ पुरंदर री विसेषाली। - सीताराम-चौपाई (१.२) ५.२.१५९ पुरोहितिया-नी - द्रौपदी-चौपाई (१.१५) ५.२.१६० पूजीजइ हे सखि फबवधि पास कि आसा पूरइ सुरमणी। - श्री अमरसर मण्डण श्री शीतलनाथ वृहत्स्तवनम् ५.२.१६१ पूरउ नइ सुहागण रूढो साथियो जी। - चार प्रत्येकबुद्ध रास (४.४) ५.२.१६२ पूरव भव तुम्हें सांभलउ। - सिंहलसुत-चौपाई (९) ५.२.१६३ पोपट चाल्यो रे परणवा। - चम्पकवेष्ठि-चौपाई (१.१); गौतमपृच्छा-चौपाई (२); थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (१.९); श्री जिनसागरसूरि गीतानि (११) ५.२.१६४ प्रतिबुधउ रे। - पुण्यसार-रास (१४) ५.२.१६५ प्रभु प्रणमुं रे पास जिणेसर थंभणो। ___ - श्री घंघाणी पार्श्वनाथ स्तवन पौषध विधि गीतम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508