Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text ________________
४२२
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ५.२.२४१ वांगलिया
- मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.८) ५.२.२४२ वाज्यउ वाज्यउ मादल कउ घोकार।
- सीताराम-चौपाई (४.५) ५.२.२४३ वाडी फूली अति भली मन भमरा रे।
- नलदवदन्ती-रास (५.३); चार प्रत्येकबुद्ध-रास (४.८) ५.२.२४४ वालुं रे सवायो वयर हूं माहरो रे।
-पुण्यसार-रास (४); द्रौपदी-चौपाई (२.२); सिंहलसुत-चौपाई (३) ५.२.२४५ वाहण सिलामती ए।
- श्री जिनसागरसूरि गीतानि (९); चार प्रत्येकबुद्ध-रास (४.१) ५.२.२४६ वीर वखाणी राणी चेलणा।
- नलदवदन्ती-रास (४.४); गणधरवसही आदि जिन स्तवनम् (८) ५.२.२४७ वीरा हो थारइ सेहरइ मोह्या पुरुष वियार लाडण वी.।
- सीताराम-चौपाई (९.६) ५.२.२४८ वीसारी मुन्हे वालहइ तथा हरियानी।
- सीताराम-चौपाई (४.२) ५.२.२४९ वेगवती तिहां बांभणी।
- चम्पकवेष्ठि-चौपाई (२.५) ५.२.२५० वेगि विहरण आव्यो घरे।
- श्री प्रसन्नचन्द्र राजर्षि गीतम् ५.२.२५१ वेसर सोना की घरि दे वे चतुर सोनार वे।
- सीताराम-चौपाई (४.१) ५.२.२५२ शांति जिण भामिडलइ जाऊँ।
- थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (२.१०); मृगावती-चरित्र-चौपाई (३.१२) ५.२.२५३ शालिभद्र आज तुम्हानइ आपणी माता।
- श्री जिनसागरसूरि गीतानि(४) ५.२.२५४ शील कहे जगि हूं बड़ो।
- चार प्रत्येकबुद्ध-रास (२.८); सीताराम-चौपाई (९.७) ५.२.२५५ श्रावण मास सोहामणउ ए चउमासिया।
- सीताराम-चौपाई (६.७) ५.२.२५६ श्री गौतम श्री अगनिभूति।
- साधु-वन्दना-रास (१४)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508