Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व गेय-रचना की, उनके लिए लोकगीत, देशी, जाति आदि शब्दों का प्रयोग किया है। ये जनसाधारण के बीच गाये जाने वाले वे गीत हैं, जो परम्परा से किसी जन-समाज में प्रचलित तथा लय-प्रधान हैं। यद्यपि मार्गी और देशी-दोनों का स्रोत लोक-संगीत है, अन्तर केवल यही है कि प्रथम को संस्कारित होने के कारण उच्च श्रेणी में स्थान मिला और द्वितीय लोक-रुचि के अनुकूल विकसित होने के कारण जनसाधारण में लोकप्रिय हुई। प्रथम में अनुशासन नियमों का था, दूसरे में लोक-रुचि का। इस तरह मार्ग संगीत को राजतन्त्र का प्रतिनिधि मानें, तो देशी को लोकतन्त्र का प्रतिनिधि माना जा सकता है।
समयसुन्दर ने गेय-रचनाओं में मार्ग अर्थात् शास्त्रीय रागों को तो प्रयुक्त किया ही है, साथ ही साथ देशी' का भी प्रयोग किया है। वस्तुत: स्थानीय विशेषताओं को आत्मसात् करने के कारण ही वे देशी कहलाती हैं। कवि ने मारवाड़, गुजरात, मेड़ता, मालवी, नागौर, सिन्ध, ढूंढाड आदि विभिन्न प्रदेशों की भिन्न-भिन्न देशियों को व्यवहत किया है। उन्होंने जिन देशियों को प्रयुक्त किया, उनके उदाहरण विस्तार-भय से नहीं दिये जा रहे हैं। उनके द्वारा प्रयुक्त देशियों का विवरण इस प्रकार है - ५.२.१ अतिरङ्ग भीने हो रंग भीने।
- नलदवदन्ती-रास (५.५) ५.२.२ अपणै सौदागरउ कुं हूँ चलण न देस्यु।
- नलदवदन्ती-रास (१.५) ५.२.३ अब तुम आवो हो सिमन्धर साम्भलो।
- चार प्रत्येकबुद्ध रास (४.६) ५.२.४ अमां म्हांकी चित्रालंकी जोइ, अमां म्हाकी मारुड़इ मारुड़इ मइवासि को साद सुहामणो रे लो।
- सीताराम-चौपाई (९.१) ५.२.५ अम्मां मोरी मोहि परणावि हे अम्मां मोरी जेसलमेरां जादवां है।
- सीताराम-चौपाई (८.७) अम्हनइ अम्हारइ प्रियु गमइ, काजी महमद ना।।
- सीताराम-चौपाई (३.१) ५.२.७ अरघ मण्डित नारी नागिला।
- श्री खन्दक-शिष्य गीतम् ५.२.८ अलबेला।
- सिंहलसुत चौपाई (५); गणधरवसही आदिजिन स्तवन (२) ५.२.९ आंबो मोह्यो रे जिन तणो रयण के तारे माइ झलमला।
- चार प्रत्येकबुद्ध रास (३.१६); सीताराम-चौपाई (७.७)
५.२.६
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