Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
३८९ प्रवृत्ति थी। यहाँ हम कवि की छन्दोयोजना को संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनमें प्रत्येक छन्द का लक्षण कवि द्वारा 'वृत्तरत्नाकर' पर लिखी व्याख्या के आधार पर एवं उनकी रचनाओं से एक-एक उदाहरण देकर स्पष्ट करेंगे - ४.१ अनुष्टुप
आठ-आठ अक्षरों के चार चरणों के छन्द को अनुष्टुप छन्द कहते हैं। उदाहरण के लिए निम्न पद्य अवलोक्य है - १ २ ३ ४ ५६७८
साधुचक्षुर्व्यथोद्भूत-पापशुद्धिकृते तृणम्।
पुनः पुनर्व्वलत्याशु कृशानौ जनसाक्षिकम् ॥ ४.२ विद्युन्माला
यह चार चरणों का एक वर्णवृत्त है, जिसके प्रत्येक चरण में दो मगण और दो गुरु होते हैं। यथा -
म. म. गु-२ 555 555 55
श्रीसर्वज्ञं प्रोद्यत्प्रज्ञं, मोक्षावासं दत्तोल्लासम्।
भव्याधारं रम्याकारं, वंदे नित्यं नष्टासत्यम्॥ ४.३ मधुमती
यदि प्रत्येक पाद में दो-दो नगण तथा एक-एक गुरु हो, तो उस वर्ण-वृत्त को मधुमती कहते हैं। जैसे -
न. न. गु.
प्रमुदित-हृदयं स्तुति-गुण-निकरे।
मधुकर इव ते, मधुमति कुसुमे ॥२ प्रस्तुत छन्द का नाम 'वृत्तरत्नाकर' में मधु दिया गया है, मधुमती संज्ञान्तर है। ४.४ भद्रिका
यह वृहती का एक भेद है। संस्कृत-छन्द के ग्रन्थों में नवाक्षर भद्रिका का उल्लेख नहीं है, किन्तु एकादशाक्षर भद्रिका-छन्द 'वृत्तरत्नाकर' आदि ग्रन्थों में निर्दिष्ट है। प्रस्तुत उदाहरण से इसका लक्षण मगण, नगण और रगण प्रतीत होता है, किन्तु उदाहरण के तृतीय पाद में यह लक्षण नहीं मिलता है। ऐसा लगता है कि तृतीय पाद का मुद्रित पाठ अशुद्ध है, क्योंकि इसका अर्थ भी अस्पष्ट है। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, तृणाष्टकम् (२) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नानाविधकाव्यजातिमयं नेमिनाथस्तवनम् (१२) ३. वही, श्री वीतरागस्तव-छन्दजातिमयम् (४)
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