Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हो, तो उसका नाम 'हरिणी' होता है। उदाहरण नीचे प्रस्तुत है -
न. स. म. र. स. ल.गु. ।।। ।। 555 ।।ऽ . ।।ऽ ।ऽ तिमिर-निकर-ध्वंश-सूर्य भवोदधि-तारणम्।
हित-सुखकर-भव्य-प्राणि-व्रजा-सुख-वारणम्॥ तव सुवचनं पीयूषाभां करिष्यति नान्यथा।
नरकगतितो नश्येत् प्राणी यथा हरिणी हरे :॥१ ४.१९ शार्दूलविक्रीडित
इस वर्णवृत्त का प्रत्येक पद १९ अक्षरों का होता है। उनका क्रम इस प्रकार हैमगण, सगण, जगण, सगण, तगण, पुनः तगण और अन्त में एक गुरु। जैसे -
म. स. ज. स. त. त. गु. 555 ।।5 । । ।।ऽ ऽ ऽ । ऽऽ ।ऽ
आचार्यः शतशश्च संति शतशो, गच्छेषु नाम्ना परां, त्वं त्वाचार्य पदार्थयुग युगवरः प्रौढः प्रतापाकरः। भव्यानां भवसागरप्रतरणे, पोताय मानो भुवि,
श्री मच्छ्रीजिनसागरः सुखकरः सर्वत्रशोभाकरः॥२ ४.२० स्रग्धरा
____ यदि मगण, रगण, भगण, नगण और तीन यगण हों तथा तीन बार सात-सात अक्षरों पर यति हो, तो वह वार्णिक छन्द 'स्रग्धरा' कहलाता है। यथा -
म. र. भ. न. य. य. य. 555 515 511 ili 155 155 155
ब्रह्माणं केपि देवं पुनरपि गिरिशं केपि नारायणं च। केचिच्छक्तिस्वरूपं पुनरपि सुगतं केचि दल्लाभिधानम्॥ मुग्धाध्यायंत्यहं सद्गुणमपिजलधिं वीतरागं स्मरामि।
को वांछेत्काचमालां यदि मिलति माहकांचिनी स्रग्धरायां॥३ विशेष – यहाँ प्रथम चरणान्त 'च' को गुरु माना गया है। ४.२१ आर्या
आर्या छन्द के पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध में चातुर्मात्रिक सात गण एवं अन्त में एकएक गुरु वर्ण होता है। इस अर्द्धमात्रिक छन्द के पूर्वार्ध में ३० मात्राएँ एवं उत्तरार्ध में २७ १. वही, श्री वीतरागस्तव-छन्दजातिमयम् (१९) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री जिनसागरसूर्याष्टकम् (५) ३. वही, श्रीवीतरागस्तव - छन्दजातिमयम् (२१)
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