Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व संस्कृत ग्रन्थों में इसका उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है
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है । यथा
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४.९ उपजाति
जिस वार्णिक वृत्त में इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का लक्षण मिला हो, उसका नाम ‘उपजाति' छन्द है। दो तगण, एक जगण और दो गुरु इन्द्रवज्रा का लक्षण है और क्रम से जगण, तगण, जगण के अनन्तर दो गुरु उपेन्द्रवज्रा का लक्षण है। उदाहरण इस प्रकार है
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(इन्द्र) निर्मुक्तराग प्रमदाभिराम, वने मतंगप्रमदाभिराम । ( उपेन्द्र) (इन्द्र) नम्रीभवन्मंदरविग्रहाभ, जय प्रभो ! मंदरविग्रहाभ ॥ ( उपेन्द्र )
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४.११ तोटक
दृष्टो मयाऽर्त्तिहतो, भाग्याद्भवं भ्रमता । श्री वीतराग - जगच्चूडामणि स्वमहो ॥१
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विशेष— यहाँ पादान्त ह्रस्व-स्वर गुरु है ।
४.१० भुजङ्गप्रयात
जिसके प्रत्येक चरण में चार-चार यगण होते हैं, उसको 'भुजङ्गप्रयात' वर्णवृत्त कहते हैं । इसका उदाहरण
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लसण्णाण - विन्नाण-सन्नाण- मेहं,
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मणं कला - केलि-रूवाणुगारं,
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कलाभिः कलाभिर्युतात्मीय देहम् ।
स्तुवे पार्श्वनाथं गुणश्रेणि-सारम् ॥३
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जिस वर्ण-वृत्त के प्रत्येक चरण में चार सगण होते हैं, उसे तोटक कहा जाता
१. वही, श्री वीतरागस्तव - छन्दजातिमयम् (६)
२. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नानाविधश्लेषमयं श्री आदिनाथस्तोत्रम् (२) ३. वही, संस्कृतप्राकृतभाषामयं पार्श्वनाथलघुस्तवनम् (१)
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