SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व संस्कृत ग्रन्थों में इसका उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है त. 551 भ. ऽ ।। है । यथा गु. S ४.९ उपजाति जिस वार्णिक वृत्त में इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का लक्षण मिला हो, उसका नाम ‘उपजाति' छन्द है। दो तगण, एक जगण और दो गुरु इन्द्रवज्रा का लक्षण है और क्रम से जगण, तगण, जगण के अनन्तर दो गुरु उपेन्द्रवज्रा का लक्षण है। उदाहरण इस प्रकार है गु. गु. त. त. ज. ऽ ऽ । S51 ISI SS (इन्द्र) निर्मुक्तराग प्रमदाभिराम, वने मतंगप्रमदाभिराम । ( उपेन्द्र) (इन्द्र) नम्रीभवन्मंदरविग्रहाभ, जय प्रभो ! मंदरविग्रहाभ ॥ ( उपेन्द्र ) 551 ISI त. ४.११ तोटक दृष्टो मयाऽर्त्तिहतो, भाग्याद्भवं भ्रमता । श्री वीतराग - जगच्चूडामणि स्वमहो ॥१ । ऽ । ज. ज. विशेष— यहाँ पादान्त ह्रस्व-स्वर गुरु है । ४.१० भुजङ्गप्रयात जिसके प्रत्येक चरण में चार-चार यगण होते हैं, उसको 'भुजङ्गप्रयात' वर्णवृत्त कहते हैं । इसका उदाहरण य. य. 155 य. ISS । ऽ ऽ लसण्णाण - विन्नाण-सन्नाण- मेहं, Jain Education International य. । ऽ ऽ मणं कला - केलि-रूवाणुगारं, SS गु. २ कलाभिः कलाभिर्युतात्मीय देहम् । स्तुवे पार्श्वनाथं गुणश्रेणि-सारम् ॥३ ३९१ जिस वर्ण-वृत्त के प्रत्येक चरण में चार सगण होते हैं, उसे तोटक कहा जाता १. वही, श्री वीतरागस्तव - छन्दजातिमयम् (६) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नानाविधश्लेषमयं श्री आदिनाथस्तोत्रम् (२) ३. वही, संस्कृतप्राकृतभाषामयं पार्श्वनाथलघुस्तवनम् (१) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy