Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व (ख) आनन्दवर्धन के अनुसार अंगीरस के आश्रित रहने वाले तत्त्व रूप में।
परवर्ती आचार्यों ने गुणों को रसाश्रित ही माना, किन्तु उन्होंने गुणों का वर्णों के साथ स्पष्ट संबंध भी स्वीकार किया। अतः गुणों का संबंध काव्य के अन्तः और बाह्यदोनों पक्षों से है। आचार्य मम्मट एवं विश्वनाथ ने गुण तीन माने हैं - (१) माधुर्य, (२) ओज और (३) प्रसाद । समयसुन्दर की कृतियों में वर्ण्य-विषय के अनुरूप इन तीनों गणों का उचित समावेश प्राप्त होता है। ३.१ माधुर्य-गुण
जिसके कारण अन्तःकरण आई हो जाये या पिघल-सा जाये, वह आह्लाद विशेष ही माधुर्यगुण कहलाता है। यह संयोग-शृंगार, विप्रलम्भ-शृंगार, करुण और शान्तरस में क्रमशः अधिकता से पाया जाता है। ट, ठ, ड, ढ़ को छोड़कर स्पर्श, वर्ण, वर्गान्त वर्ण से युक्त अर्थात् अनुस्वार-सहित वर्ण, ह्रस्व 'र' और 'ण' समास का अभाव अथवा दो-तीन या अधिक से अधिक चार पद मिले हुए समास और मधुर कोमल पदरचना - ये सब माधुर्य-गुण के व्यंजक हैं। समयसुन्दर की रचनाएँ उक्त लक्षणों से भूषित हुई हैं। जैसे -
निखिल-निर्वत निश्वन नर्दितं, नत जनं सम नर्मद-दम्भमम्। दमपदं विमदं धननव्यभं, नभ वनं हससं शिवसम्भवम्॥
- श्री पार्श्वनाथ भंगाटकबन्ध स्तवनम् (२) लसण्णाण-विन्नाण सन्नाण मेहं, कलाभिः कलाभिर्युतात्मीय देहम्। मणुण्णं कलाकेलिरूवाणुगारं, स्तुवे पार्श्वनाथं गुणश्रेणिसारं ॥ सुआ जेण तुम्हाण वाणी सहेवं, गतं तस्य मिथ्यात्वमात्मीयमेवम्। कहं चंद मज्झिल्ल-पीऊस-पाणं, विषापोहकृत्ये भवेन्न प्रमाणम्॥
- संस्कृतप्राकृतभाषामयं पार्श्वनाथलघु स्तवनम् (१-२) १. तमर्थमवलम्बने येऽङ्गिन ते गुणाः स्मृताः। - हिन्दी ध्वन्यालोक (२.६) २. द्रष्टव्य – (क) काव्यप्रकाश (८.६६) (ख) रसस्याङ्गित्वमाप्तस्य धर्माः शौर्यदयो
यथा। ३. (क) माधुऽयौजः प्रसादाख्यास्त्रयस्ते न पुनर्दश। - काव्यप्रकाश (८.८.९)
(ख) गुणाः माधुर्यमोजोऽथ प्रसाद इति ते त्रिधा। - साहित्यदर्पण (८.१) ४. आह्लादकत्वं माधुर्य शृङ्गारे द्रुतिकारणम्।
करुणे विप्रलम्भे तच्छान्ते चातिशयान्वितम्॥-काव्यप्रकाश (८.६८) चित्तद्रवीभावमयो हादो माधुर्यमुच्यते ।
सम्भोगे करुणे विप्रलम्भे शान्तेधिकं क्रमात्॥ - साहित्य दर्पण (८.२) ५. काव्य-कल्पद्रुम, प्रथम भाग, पृष्ठ ३३९-४०
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