Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व आंखि ऊँडी तारा जगमगइ, सुरतरु सुरुआ कान। सूकी आंगली मग नी फली, पग जिम सूकू पान ॥ ........... सूकू खोलूँ जेहवु सर्प , तेहवं दीठ सरूप ॥
__ - श्री धन्ना (काकंदी) अणगार गीतम् (९.९२) जुतसेण तीर्थंकर सेती, मोहि रह्या मन मोरा रे। मालति सुं मधुकर जिम मोह्या, मेघघटा जिम मोरा रे॥ मयगल जिम रेवा सुं मोह्या, हंस मानस सुं सदोरा रे। मीन मोह्या जिन जलनिधि मांहे, चंद सुं जेम चकोरा रे ।।
. -ऐरवतक्षेत्र चतुर्विंशति गीतानि (८.१-२) चन्द्रवदन मृगलोयणी, भासुर ससिदल भाल। नासिका दीप-सिखा जिसी, केलि गर्भ सुकुमाल॥ दंत जिसा दाडिमकूली, सीस फूल सिणगार। काने कुंडल झलहलइ, कटि ऐ काउलि हार ॥
- थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.६.७-८) दरियउ तरिवउ बांहे करी, अगनि उल्हामणी पाय। गंगाजल साम्हउ जइवउ, तिम संजम कहिवाय॥ निसवाद वेलूना कउलीआ, त्राकडि तोलिवउ मेर। राधावेधरी पूतली, तीर सुं वीं धवी फेरि ॥
- थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.९.२३-३४) २.७ उत्प्रेक्षालङ्कार
इस अलंकार में उपमेय एवं उपमान के भेद का ज्ञान होने पर भी इस बात का उल्लेख होता है कि उपमेय मानो उपमान के सदृश जान पड़ता है। आलोच्य साहित्य में उत्प्रेक्षा का बाहुल्य देखा जा सकता है। कवि ने अपनी रचनाओं में जहाँ पर भी जाणे, जनु, मनु, मानो, जानो, निश्चय, इव, जानहु, मनहु आदि शब्द प्रयुक्त किये हैं, वे उत्प्रेक्षालंकार वाचक हैं। देखिये उनके उत्प्रेक्षालंकार की कमनीयता के कुछ उदाहरण -
दिनश्रीधिक्कृता यांती रुष्टा, रात्रि-निशाचरी। वह्निज्वालावलीMञ्चतीव, भानुप्रकाशतः॥
-उद्गच्छत्सूर्यबिम्बाष्टकम् (२) उपर्युक्त पद्य में 'दिनश्री' के द्वारा भयागी गयी रात्रि रूपी निशाचरी के क्रोधाभिव्यक्ति की उत्प्रेक्षा भानु के प्रकाश से वह्नि की ज्वाला को प्रकट करने से की गई है। अपि च -
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