Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व 'अलंकार' बताया है - 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते ।' आनन्दवर्धन ने वाणी की अनन्त शैलियों को 'अलंकार' कहा है अनन्ता हि वाग्विकल्पाः तत्प्रकाश एवं चालङ्काराः । ' विश्वनाथ के अनुसार, 'शब्दार्थयोरस्थिरा ये धर्माः शोभातिशायिनः ' अर्थात् शब्द तथा अर्थ के जो शोभातिशायी - सौन्दर्य की विभूति बढ़ाने वाले अस्थिर धर्म हैं, वे ही अलंकार हैं । निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि शब्दों एवं उनके अर्थों में अनियमित रूप से निहित वह धर्म या तत्त्व जिसके कारण, किसी व्यंग्यार्थ की प्रतीति के बगैर भी शब्दों की विलक्षण विन्यास - शैली से ही किसी कथन के व्यंग्यार्थ में कुछ विशेष रमणीयता या शोभा आ जाती है, अलंकार है । और जहाँ अलंकार एवं अलंकार्य में सामंजस्य स्थापित हो जाय, वहाँ काव्य की प्राकृतिक रमणीयता उच्छलित होती है।
१. दि पोइटिक इमेज, पृष्ठ १६ २. चिन्तामणि, पृष्ठ १८१
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अलंकार कविता का मुख्य अंग होने से सुप्रसिद्ध अमेरिकन लेखक हर्बर्टरीड ने लिखा है कि किसी कवि की कृति की आलोचना करते समय उसके अलंकारों की शक्ति तथा मौलिकता पर अवश्य दृष्टि रखनी चाहिये। अतः समयसुन्दर की रचनाओं में प्रयुक्त अलंकारों पर भी समालोचनात्मक दृष्टि से विचार कर लेना नितान्त जरूरी है । कवि समयसुन्दर की कृतियों में शब्दालंकार, अर्थालंकार, और उभयालंकार – ये तीनों प्रकार के अलंकार बड़ी रमणीयता के साथ प्रयुक्त हुए हैं। शब्दालंकारों आदि का व्यामोह तो कभी-कभी कवियों पर इतना अधिक हावी हो जाता है कि प्रेषणीय भाव-तत्त्व बिल्कुल गौण बन जाता है। केशव प्रभृति अनेक कवियों में यह प्रवृत्ति देखी जाती है, किन्तु समयसुन्दर के काव्यों में अलंकारों का प्रयोग अत्यन्त स्वाभाविक ढंग से हुआ है। उन्होंने अलंकारों का विनियोजन इस प्रकार किया है कि उससे उनके काव्य प्रभावशाली तथा रोचक बन गये हैं। उनके अलंकार- प्रयोग आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इस कथन को चरितार्थ करते हैं 'अलंकारों के द्वारा हृदय के भाव - बन्धन खुलते हैं और नीरसता का भाव मिट जाता है। '२ हमें ऐसा अहसास होता है कि कवि ने अपने काव्य के रसों तथा भावों के उत्कर्ष एवं अपनी अभिव्यक्ति को सबल एवं सुन्दर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया है । कवि के काव्य-रचना के उपक्रम में कुछ अलंकारों के लिए कवि को प्रयत्न करना पड़ा और कुछेक अलंकार उनके काव्यपक्षीय स्वभाव के अंग बनकर अनायास उनकी रचनाओं में आ गये । यद्यपि कवि समयसुन्दर कतिपय रचनाओं में अलंकार के मोह से ग्रस्त हुए हैं, लेकिन फिर भी उन अलंकारों का प्रयोग ललित ही बना है, न कि भार रूप । जो रचनाएँ अलंकार प्रधान हैं, उनमें भी हम पायेंगे कि कवि ने उन्हें यथाम्भव कृत्रिमता से बचाया है। यहाँ अब हम देखेंगे कि कविवर्य समयसुन्दर ने अपनी रचनाओं को किस प्रकार विविध अलंकारों से विभूषित किया है.
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