Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
फिर तो हनुमान का रोष उबलने लगा। उसने विकराल वानर का रूप धारण कर लङ्का को तहस-नहस कर दिया। हनुमान के प्रत्येक कार्य से क्रोध व्यंजित रौद्र-रस का परिपाक हो जाता है। इसी तरह इन्द्रजित द्वारा नागपाश में आबद्ध हनुमान का और रावण का परस्पर संवाद क्रोध को उद्दीप्त करता है।
भामण्डल द्वारा भरत को लक्ष्मण की मूर्छा का पता लगते ही उसे रावण पर बड़ा क्रोध आता है और वह रावण को मौत के घाट उतारने के लिए यह कहते हुए तलवार लेकर दौड़ता है -
रे रे किहां रावण तिको, ते देखाडो मुज्झ ।
जिण मुझ बांधव नइ हण्यो, तिण सेती करूँ झुज्झ ॥२
रण में राम-पक्ष की ओर विभीषण को देखते ही रावण क्रोधाभिभूत हो जाता है। रावण और विभीषण का संवाद एक-दूसरे की सुप्त रौद्रता को जागृत करने वाला है। इसी प्रकार कवि ने संग्रामादि के प्रसंगों में रौद्ररस की सुन्दर अवतारणा की है। विस्तारभय से उन सभी का यहाँ उल्लेख करना अशक्य है। १.५ वीररस
___ वीररस का स्थायीभाव उत्साह है। मन में इस रस का सञ्चार उस विकट परिस्थिति के कारण होता है, जो उत्साह वीरता, साहस इत्यादि गुणों से उत्पन्न होता है। साहित्य-दर्पण में वीर रस के चार भेद किये गये हैं - १.युद्धवीर, २.दानवीर ३. दयावीर
और ४ धर्मवीर। आलोच्य साहित्य में उक्त चारों प्रकार के वीररसों का सुन्दर निर्वाह हुआ है। १.५.१ युद्धवीर
राजा पद्मनाभ का पाँच पांडवों से युद्ध होता है, किन्तु जब पाण्डव उसे और उसकी विशाल सेना पर विजय पाने में समर्थ न हो सके, तब कृष्ण वीरोचित उत्साह से भर जाते हैं। वे रथारूढ़ होकर शंखनाद करते हैं, साथ ही धनुष टंकार भी -
हुं निश्चय करी झूझस्यां रे, जीपस्युं रण करी जोर।
हम कही रथ ऊपरि चडी रे, संख बजाडयउ चोर ॥६ और भी - १. द्रष्टव्य - वही (६.२.३९-६९) २. द्रष्टव्य - वही (६.२.६१-६४) ३. सीताराम-चौपाई (६.७ से पूर्व दूहा ५) ४. द्रष्टव्य - वही (६.५ से पूर्व दूहा १४-१८) ५. साहित्य दर्पण (३.२३४) ६ द्रौपदी-चौपाई (३.२.१८)
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