Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व मूआ घणा मनुष्य, रांक गलीए रडवडिया, सोजो वल्यउ सरीर, पछइं पाज मांहे पडिया। कालइ कवण वलाइं, कुण उपाडइ किहां काठी, तांणी नाख्या तेह , मांडि द्यइ सगली माठी। दुरगंधि दशोदिशि ऊछली, मडा पड्या दीसइ मूआ।
'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, किण घरि न पड्या कुकुआ। पुनर्यथा --
रडवड़ता गलीए मूआ रे, मडा पड्या ठाम ठांम।
गलिमांहे थइ गंदगी रे, चै कुण नांखण दांम॥२ रानी मृगावती बावड़ी के रुधिर जैसे लाल-वर्णी जल में स्नान करके गीले वस्त्रों सहित बाहर निकली, तो गगन में उड़ रहे भारण्ड नाम के एक मांस-भक्षी पक्षी ने उसे देखा। भारंड ने आनन्दप्रद भोजन मिला, ऐसा जानकर मृगावती को अपने पंजों से पकड़कर गगन में उड़ चला - यह दृश्य भी वीभत्सपूर्ण है -
बावड़ी झीली नीसरी, अंग ऊघाड़इ तेह। लाल रंग लागी हर्यउ, जाणि रुधिर मृत देह ॥ भारंड नामा पंखीयउ, गगन भमतउ देखि। तुरत ते नीचो ऊतर्यउ, पूरव करम विशेषि ॥ आमिष पंखी एह छइ, भलउ मिल्यउ मुझ भक्ष।
चरण ग्रही उडी चल्यउ, सहु देखतां प्रत्यक्ष ॥रे १.८ अद्भुत-रस
अद्भुत रस का स्थायीभाव विस्मय' है। पण्डित नारायण ने सर्वत्राप्यद्भुतो' रस: की स्थापना कर अद्भुत को ही मूल और एक मात्र रस माना है। इस सिद्धान्त का मूलाधार है, चमत्कार । अद्भुत रस अपनी अपूर्वता, विचित्रता या विलक्षणता से हमें मुग्ध एवं स्तब्ध कर देता है। अद्भुत रस दो प्रकार का मान्य है - १. दिव्यज - देव-संबंधी चमत्कार से उत्पन्न और २. आनन्दज -- मनोरथ की सिद्धि करने वाली आकस्मिक घटनाओं से उत्पन्न।
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, सत्यासिया दुष्काल-वर्णन छत्तीसी (१७) २. चंपक-श्रेष्ठी-चौपाई (२.६.१३) ३. मृगावती-चौपाई (१.४. दो १-३) ४. साहित्य दर्पण, विमला-टीका, पृष्ठ ४९ ५. नाट्यशास्त्र (६.८३)
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