Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
एक स्त्री एक पति ही वरण करती है और वही पतिव्रता मानी जाती है, लेकिन द्रौपदी पांच पतियों की पत्नी होकर भी सती कहलाती है - यह तथ्य अजीब-सा लगता है | सती सुभद्रा ने अपने सतीत्व - बल पर कच्चे धागे के सूत्र के द्वारा चलनी में कूप से पानी निकाला और किसी से न खुलने वाले 'चंपाद्वार' पर उस पानी के छींटे गिराकर खोल दिया । यह प्रसंग कितना विलक्षण एवं विचित्र है
३६४
राम द्वारा देवाधिष्ठित धनुष चढ़ाना रे, लक्ष्मण द्वारा कोटिशिला को बांयी भुजा से ऊँची उठाना, मुनि को वन्दन करने मात्र से पक्षी (जटायुध) के दुर्गन्धित शरीर का सुगन्धित और नीरोग हो जाना' इत्यादि प्रसंग भी अचरज भरे हैं। सीता के शील की अग्नि- परीक्षा अद्भुत रस का श्रेष्ठ उदाहरण है। सौ हाथ दीर्घ वापी की धधकती हुई अग्नि में सीता प्रवेश करती है, परन्तु अचम्भे की बात यह है कि वह अग्नि जल में परिवर्तित हो जाती है। अजस्र जल-प्रवाह के कारण सब लोग डूबने लगे। सबने सीता को देवनिर्मित स्वर्णमणि-पीठिका पर सहस्रदल कमलासन पर विराजमान देखा। सीता ने जल-प्रवाह को स्तम्भित कर दिया और देवों ने प्रकट होकर पुष्टवृष्टि की। इस तरह यह अद्भुतरस का एक अच्छा उदाहरण है ।
काचे तांतण सूत्र नइ जी, चालणी काढ्युं नीर । चंपा बार उघाडियउ जी, सीले साहस धीर ॥ २
इसी प्रकार राजा सिंहरथ के पास दो घोड़े भेंट-रूप आये। घोड़ों की परीक्षा करने के लिए राजा और राजकुमार - दोनों एक-एक घोड़े पर सवार होकर शहर से बाहर निकल पड़े, परन्तु जब वे घोड़ों को रोकने के लिए जैसे-जैसे लगाम खींचते हैं, वे घोड़े वैसे-वैसे अधिक तेज गति से दौड़ते हैं । अन्त में उन्होंने जब मजबूर होकर लगाम ढीली छोड़ी, तो घोड़े भी तत्काल रुक गये। दोनों व्यक्ति इस रहस्यपूर्ण घटना से चकित हो जाते हैं।
सिंहलकुमार ने कूप से मनुष्य की आवाज सुनी तो उसने उसे बाहर निकाल दिया, लेकिन सिंहल के आश्चर्य का पार ही न रहा कि वह वास्तव में सर्प था, जो मानवीय बोली बोल रहा था। उसने बाहर निकलते ही सिंहल को काट खाया, जिससे वह कुबड़ा १. वही, दौपदी - चौपाई (२.८.२)
२. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री सुभद्रासती गीतम् (४)
३. द्रष्टव्य - सीताराम - चौपाई (१.७.१७)
४. द्रष्टव्य ५. द्रष्टव्य ६. द्रष्टव्य ७. द्रष्टव्य
वही (६.१.२३)
• सीताराम - चौपाई (५.१.६-१० )
-
वही (९.२)
- चार प्रत्येक-बुद्ध-चौपाई (४. १)
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org