Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व वंशस्थल नगर में एक मुनि आत्म-साधना कर रहे थे, परन्तु उन पर दैविक उपसर्ग हो रहे थे। उपसर्गदायक देव का भीमकाय रूप और उसकी क्रियाएँ वीभत्स मित्रित भयानक रस की अनुपम सृष्टि करती हैं -
अगनि सीरीषा केस, आँखि बिली जिसी, निपट नासिका चीपडीए। काती सरिखी दाढ, अति बीहामिणी, भाल उपरि भृकुटी चडीए॥ काती नइ करवाल, करि झालि करी, नाचई कूदई आफलइए। काया मनुष्य नी कोटि मांस खायई मुखि, हसइ धणुं नई हूकलइए॥ मूकइ अंगिनी झाल, खांउ खांउ,खांउ करइ, भूतप्रेत अम्बर तलइए। क्रूर महा विकराल, भीम भयंकर काल, कृतांत रीसइं बइइए॥
इसी प्रकार दमयन्ती को भक्षणार्थ उपस्थित राक्षस की भैरवता का चित्रांकन अल्प शब्दों में होते हुए भी कितना डरावना है -
काल रूप विकराल, भीम भयंकर, मुण्ड रुण्ड माला धरइ ए। अगनि तणी मुख जाल, दाढ़ काती जिसी, यम सरिखउ खाउ खाउ करइ ए॥२
अकाल की भयानक स्थिति का वर्णन तो हम प्रथम अध्याय में विस्तारपूर्वक कर ही चुके हैं; अतः इससे संबंधित प्रसंग को वहाँ देखा जा सकता है।
सीता से विवाह करने के लिए राजाजन धनुष चढ़ाने में सक्षम न हो सके, क्योंकि धनुष प्रतिभय उत्पन्न कर रहा था -
अभिमानी राजा उठ्या, धनुष चढ़ावा लागा। बलती आगि नी झाला ऊठी, ते देखी नइ भागा॥ अति घोर भुजंगम अट्टहास पिशाच उपद्रव होई।
रे रे रहउ हुसियार आंपानइ, कूड मांड्यउ छइ कोई ॥३ राम-रावण के युद्ध की भयंकरता का चित्रण करते हुए कविवर कहते हैं -
रुधिर तणी बूही नदी, नर संहार निसीम।
रामायण सबलो मच्यो, महाभारत राण भीम। सीता के शील की अग्नि-परीक्षा हेतु एक विशाल अग्निकुण्ड तैयार किया गया। दर्शकों के लिए उसमें प्रज्वलित अग्नि का कराल रूप अति भयकारी था। कवि समयसुन्दर कहते हैं -
१. सीताराम-चौपाई (४.६.१०-१२) २. नल-दवदन्ती रास (३.५.१७) ३. सीताराम-चौपाई (१.७.१५) ४. वही, (खण्ड ७.२ से पूर्व दूहा ४)
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