Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
३५९ बलात्कारपूर्वक किसी स्त्री के साथ संभोग न करने का व्रत लेकर मृत्यु पर्यन्त उस व्रत का पालन किया। जम्बूकुमार किशोरावस्था में ही चारित्र्य के प्रति अपार उत्साह दिखाता है। वैराग्य के प्रति थावच्चापुत्र का उत्साह भी दर्शनीय है। माँ का करुण विलाप, शिक्षा, चारित्रिक कठिनाइयों का निदर्शन भी उसे अपने निश्चय से विचलित नहीं कर सका। साधक साधुओं से संबंधित रचनाओं से स्पष्ट ज्ञात होता है कि उनके पात्र उच्चतम धर्मवीरता से ओतप्रोत हैं। इन पात्रों पर जैसे-जैसे उपसर्ग, परीषह आदि आते, वैसे-वैसे उनकी धर्मवीरता दृढ़-दृढ़तर से दृढ़तम होती जाती। सतियाँ भी विकट से विकट परिस्थिति में अपने सतीत्व पर अडिग रहती हैं- यह तथ्य सतियों से संबंधित रचनाओं से स्पष्ट हो ही जाता है। १.६ भयानक-रस
भयानक-रस का स्थायीभाव 'भय' स्वीकृत है। किसी की शारीरिक विकृति, आपराधिक प्रवृत्ति अथवा अनिष्ट या संकट-सूचक सम्भावना की अभिव्यक्ति में भयानकरस का परिपाक होता है। भरत ने इस रस के तीन भेद स्वीकार किये हैं
१. व्याज जन्य अर्थात् कृत्रिम, २. अपराधजन्य और ३. वित्रासितक अर्थात् खतरे की शंका इत्यादि से उत्पन्न।
कवि ने भय का परिपाक अनेक स्थलों पर किया है, जिनमें से यहाँ कुछ विशिष्ट स्थलों को ही प्रस्तुत किया जा रहा है।
अतुल बलशाली राम ने जब धनुष तोड़ दिया, तब उसके भयंकर टंकार से पृथ्वी एवं पर्वत कांपने लगे, शेष-नाग विचलित हो गये, अप्सराएँ भय से आतंकित होकर अपने पतियों से आलिंगित हो गईं, आलानस्तम्भ उखाड़कर हाथी मदोन्मत्त हुए दौड़ पड़े और सभी हाहाकार करने लगे। देखिये कवि के शब्दों में -
धरणी धूजी पर्वत काप्या, शेषनाग सलसलिया। गल गरजारव कीधउ दिग्गज, जलनिधि जल ऊछलिया। अपछर बीहती जइ आलिंग्या, आंप आपणा भरतार। राखि राखि प्रीतम इम कहती, अम्हनइ तूं आधार॥ आलान थम्भ उथेड़ी नांख्या, गज छट मयमत्त।
बन्धन त्रोड़ि तुरंगम नाठा, खलबल पडीय तुरन्त॥ १. द्रष्टव्य - सीताराम-चौपाई (पंचम-षष्ठ खण्ड) २. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, जम्बू स्वामी गीतम् (५-९) ३. द्रष्टव्य -- थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (खण्ड १, ढाल ५-१०) ४. नाट्यशास्त्र (६.८१) ५. सीताराम-चौपाई (१.७.१७-१८)
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