Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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'समयसुन्दर' कहई सत्यासीयउ, तूं परहो जा हिव पापीया ॥ १
नागश्री ने धर्मरुचि मुनि को भिक्षा में तूम्बे का साग दिया, जिसे खाने से मुनि धर्म को प्राप्त हो गये। नागश्री के इस कुकृत्य पर उसके पति एवं जेठ आदि को अत्यधिक क्रोध आता है । वे उसे धिक्कारते हैं। इस प्रसंग में कवि ने रौद्र रस को अभिव्यक्ति दी है।
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
इसी प्रकार रुक्मिणी की अपेक्षा अधिक लावण्यवती बनने की इच्छा से सत्यभामा जब प्रद्युम्न द्वारा बताई हुई विधि को क्रियान्वित किया, तब उसका रौद्र स्वरूप हमारे समक्ष उपस्थित होता है । जब वह आग बबूला होकर ब्राह्मण रूपधारी प्रद्युम्न को गालियाँ देती है, तो रौद्र के उत्तेजक पक्ष का साक्षात्कार होता है । ३
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राजा पद्मनाभ द्वारा अपहृत द्रौपदी को मुक्त कराकर पाँच पाँडव और कृष्ण लवण समुद्र पाकर गंगा-तट पहुँचे। पाँडवों ने नौका द्वारा गंगा पार की। कृष्ण की शक्ति देखने के लिए उन्होंने नौका वापस नहीं भेजी । कृष्ण भुजाओं से तैरकर नदी पार करते हैं। पांडवों द्वारा नौका न भेजने का कारण ज्ञात होने पर श्रीकृष्ण बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने उन्हें फटकारा और अपने देश से उन्हें निकाल दिया। यह प्रसंग रौद्र रस का परिचायक है । सार्थवाहों पर चोर डाकुओं ने हमला किया, तो दमयन्ती इस अत्याचार को सहन न कर सकी और उसने
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दमयन्ती कहइ एम, बांह ऊँची करी, रे रे चोर चरड जणाए । मइ राष्यउ ए साथ, कुण लूटी सकइ, निकल प्रयास ए तुम्ह तणा ए ॥ ए बाऊली करइ वात, चोर चिहुं दिसि, साथ लूटण ततपर थया ए। सती की हुंकार, सींहणिनी परिं, तस्कर मृग त्रासी गया ए ॥५
हनुमान राम का सन्देश लेकर लङ्का पहुँचे। सीता से मिलकर जब वे उस स्थान से बाहर निकले, तो राक्षसों ने उन्हें तत्काल घेर लिया। इससे हनुमान ने क्रोधावेश में वृक्ष उखाड़-उखाड़कर उन्हें मारना शुरु किया
रिपुदल त्रुटि पड्या समकालई, हनुमंत उपरि तत्क्षण । हनुमंत रिपुदल भांजी नाख्या, वृक्ष प्रहार विचक्षण ॥ वलि सहु सुभट मिलीनई धाया हनुमन्त ऊपर असिधर । हनुमंत हया गदा हथियारई, अन्धकार जिमि दिनकर ॥
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, सत्यासिया दुष्काल- वर्णन छत्तीसी (५,१०,१८,२८) २. द्रष्टव्य - द्रौपदी - चौपाई ( प्रथम खण्ड )
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३. द्रष्टव्य - शांब - प्रद्युम्न चौपाई (ढाल १० - १२ )
४. द्रौपदी - चौपाई (तृतीय खण्ड)
५. नलदवदन्ती - रास (३.५.९ - १० )
६. सीताराम - चौपाई (३.२.४०-४१ )
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