Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नरसिंह रूप किसण कीयुं, पग ने दादरे जेण ।
पोल प्राकारि भुरज भला, भुवन पाड्या सहु तेण ॥ १ 'सीताराम - चौपाई' में किया गया संग्राम का वर्णन असाधारण रूप से वीररस का परिचय देता है। इसमें ऐसे अनेक पद्य हैं, जिनमें शूरवीरता पूर्ण कृत्यों का वर्णन है। राम-रावण के संग्राम में वीररस का निम्नांकित चित्रण ओजवर्धक है
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सराई बाई सिंधुड़इ, मदन भेरि पणि बाजई । ढोल दमांमां एकल धाई, नादई अंबर गाजइ ॥ सिंहनाद करई रणसूरा, हाक बुम्ब हुंकारा । का सबद पड्यो सुणियइ नहीं, कीधा रज अंधारा ॥ युद्ध मांहोमाहि सबल लागो, तीर सडासडि लागी । जोर करी नई धा मारंतां, सुभटे, तरुयारि भागी ॥ कुहक बांध छूटइ नालि गोला, बिंदूक वहइ बिहुँ पासे । रीठ पड़इ मोगर सडगांरी, अगनि अडइ आकासे । साम्हे धाए झूझइ सूर, धड़ बिण राणी जाया ।
दल रावण रउ भाजत देखी, हत्थ विहत्थ भड धारा ॥ २
वीर प्रसूता भारत-भू का वीर - काव्य मात्र वीरपुरुषों की वीर गाथाओं से ही' गौरवान्वित नहीं है, अपितु वीरांगनाओं के बलिदान, त्याग और पराक्रम-पूर्ण कृत्यों से अलंकृत भी है । कवि ने भी वीर-ललनाओं को अपने साहित्य में स्थान दिया है। वीरपनियाँ क्षात्रधर्म का पालन करने हेतु अपने पतियों को उत्साहित करती थीं। संग्राम-वेला इनके लिए आनन्द - वेला के समान होती थी । रण-क्षेत्र में आत्म- बलिदान करना सच्ची शूरवीरता और क्षात्रधर्म का पालन माना जाता था। जो वीर यह महोत्सव सम्पन्न करता उसकी पत्नी अपने को धन्य मानती थी । वीर - बालाओं के उद्गार उनके पतियों का उत्साह बढ़ाने वाले और उनके स्वयं के उत्साह को प्रदर्शित करने वाले हैं । कवि के अनेक वर्णन ऐसे हैं, जिनमें वीर नारियाँ अपने-अपने पतियों को युद्धभूमि में शौर्य - प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं । उदाहरणार्थ -
काचित नारी इम कहई, प्रीतम कंठइ लागि । साम्हे घाये झूझिजे, पणि मति आवई भागि ॥ काचित नारी इम कहइं, तिउम करीज्ये तूं कंत । घा देखी तुझ पूठिनउ, सखियण मुझ न हसंत ॥
९. वही (३.३ से पूर्व दूहा १ ) २. सीताराम - चौपाई (६.४.११ - १५)
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