Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व है है वज्र मोरउ हीयउ रे लाल, पाथर थीय प्रचंड। वाल्हेसर थी वीछड्यां रे लाल, खिण न थयउ सतखंड॥ रे रे देव तुं कां रुठउ रे लाल, कुण अपराध मई कीध।
किहां पीहर किहां सासरउ रे लाल, दुख मांहे दुख दीध ॥१
लंका में राम के वियोग में सीता की दयनीय अवस्था विप्रलम्भ-श्रृंगार से सराबोर है -
जेहवी कमलनी हिमबली, तेहवी तनु विछाय। आंखे आंसू नाखती, धरती दृष्टी लगाय॥ केस पास छटइ थकइं, डावइ गाल दे हाथ।
नीसासां मुख नांखती, दीठी दुख भर साथि ॥२ निर्वासित सीता के महान् गुणों की स्मृति होने पर रुदन करते हुए राम द्वारा अभिव्यक्त मार्मिक उद्गार भी विप्रलम्भ-श्रृंगार को ही प्रकट करते हैं -
प्रिय भाषिणी, प्रीतम अनुरागिनी, सधउ घणुं सुविनीत। नाटक गीत विनोद सह मुझ, तुझ विण नावइ चीत ॥ सयने रम्भा विलास गृह काम-काज, दासी माता अविहड़ नेह। मंत्रिवी बुद्धि विधान धरित्री क्षमा निधान, सकल कला गुण गेह ॥
नेमिनाथ राजिमती (राजुल) से संबंधित लगभग ३५ गीतों का वर्ण्य विषय ही नेमि के प्रति राजिमती की विरह-पीड़ा को प्रगट करता है। विरहवर्णन में 'बारहमासा' का वर्णन अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। स्थानाभाव के कारण केवल उसी को ही यहां अवतरित किया जा रहा है, जिसमें बारह मासों में राजिमती के विरह तथा तज्जनित उसकी समस्त क्रियाओं की झांकी परिलक्षित होती है -
सखि आयउ श्रावण मास, पिउ नहीं मांहरइ पासि। कंत बिना हूँ करतार, कीधी किसी भणी नारि॥ भाद्रवइ वरसइ मेह, विरहणी धूजइ देह । गयउ नेमि गढ़ गिरनारि, गिर वही न सकी नारि॥ आंसू अमीझरइ चंद, संयोगिनी सुखकंद। निरमल थया सर नीर, नेमि बिना हूँ दिलगीर॥ कातियइ कामिनी टोल, रमइ रासड़इ रंग रोलि।
हूँ घरि बइसी रहि एथि, मन माहरउ पिउ जेथि॥ १. सिंहलसुत प्रियमेलक रास (५.१०-११) २. सीताराम-चौपाई (खण्ड ६, ढाल २ से पूर्व, दूहा २४-२५) ३. वही (८.३.३-४)
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