Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व उदाहरण है। कथा यह है कि एक चोर ने किसी के घर में सेंध लगायी। संयोग से दीवार गिर गई और चोर की मृत्यु हो गई। चोर की मां ने राजा ने न्याय मांगा। राजा ने, जिसके घर चोर ने सेंध लगायी, उसे बुलाया। गृहस्वामी ने कारीगर को दोषी बताया, जिसने दीवार कच्ची बनाई। कारीगर ने एक युवती को अपराधी कहा, जिसने उसका ध्यान आकृष्ट किया। युवती ने परिव्राजक को दोषी ठहराया, जो नग्न था। परिव्राजक ने राजकुमार को अपराधी सिद्ध किया, जिसने उसकी ओर घोड़ा दौड़ाया। राजकुमार ने विधाता पर दोषारोपण किया। राजा व मन्त्री ने विधाता को खोज के लिए अपने सारे कर्मचारी भेजे। इस तरह यह सम्पूर्ण कथा ही हास्य-लोक से अवतरित हुई है। मजे की बात तो यह है कि इस नगर का नाम और नगर के पदाधिकारियों एवं प्रमुख नागरिकों के नाम तक भी हास्य-रस के ही पोषक हैं -
अन्यायपुर पाटण इसो, तेहनो सुणो तमासौ रे। सरखे सरखं सहु मिल्युं, सुणतां आवै हासौ रे॥ निर्विचार राजा इहाँ, सर्वलूटाक तलारो रे। सर्वंगिल मुंहतो इहाँ, प्रधान इहाँ अनाचारो रे॥ अज्ञान राशि गुरु है तिहाँ, राजवैद्य जंतुकेतो रे। उषध रस छै एहने, कुटुंब कोलाहल ते-तो रे ॥ नगरसेठ वंचनामती, पुरोहित ते सिलापातो रे। कपटकोशा वेश्या सही, घाले ते सहु ने घातो रे॥२
'दान-शील-तप-भावना-संवाद' में दान-शील-तप-भाव-चारों का व्यंग्यपूर्ण संवाद जहाँ एक ओर शान्त-रस प्रधान है, वहीं दूसरी ओर हास्यरस से सराबोर है। इसी तरह सांब-प्रद्युम्न चौपाई के तीसरे खण्ड की सम्पूर्ण घटनाएँ एवं प्रसंग हास्यरस से पूर्ण हैं। उसमें प्रद्युम्न द्वारा कही गई बातें, बनाये गये विविध रूप और किये गये धृष्टतापूर्ण कार्य सब के सब हास्योत्पादक हैं। उसी का एक प्रसंग हम यहाँ उद्धृत करते हैं। सत्यभामा रुक्मिणी से द्वेष रखती है। प्रद्युम्न एक पण्डित का रूप बनाकर सत्यभामा के पास पहुँचता है। सत्यभामा उससे निवेदन करती है कि वह उसे रुक्मिणी से अधिक सुन्दर होने का उपाय बतावें। प्रद्युम्न द्वारा निर्दिष्ट उपाय और सत्यभामा द्वारा उस उपाय की क्रियान्विति को पढ़ते हुए हँसी के मारे पाठक के पेट में दर्द हो उठता है -
१. देखिये -- चम्पक-श्रेष्ठी चौपाई (२.४) २. चम्पक-श्रेष्ठी चौपाई (२.४.१-४)
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