Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
मस्तकि छत्र धरावतउ, चामर वींजता सार रे । आज त मस्तकइ रवि तपइ, डांस मसक भणकार रे ॥ इम मुझ दुख करंतड़ा, रोवंता रात नंइ दीस रे । नय अंध पडलवल्या, मोहनी विषम गति दीस रे । १
द्रौपदी - चौपाई में एक भिखारी की दयनीय अवस्था के चित्रण में भी ऐसा ही करुण रस का परिपाक हुआ है
डील माखी अणबणइ, हाथे लाकड़े लीध रे । पग बांध्या पाटा घणा, माथइ ठीकरुं दीध रे ॥ घरि-घरि भिक्षा मांगतउ, खंडित दंडित चीर रे । दीसइ दीन दयामणउ, सुन्दर नहीं सरीर रे ॥२
'सीताराम चौपाई' में आद्यन्त ऐसे अनेक स्थल हैं, जो करुण रस से ओतप्रोत हैं। रावण द्वारा सीता का हरण करने से लेकर राम द्वारा सीता को पुनः प्राप्त करने पर्यन्त सारी घटनाएँ करुणरस का आस्वाद कराती हैं। सीता का तो विवाह पश्चात् का अधिकांशतः जीवन करुण प्रसंगों को लिए हुए है। सीता हरण पर राम का विलाप दुःखद्रवित है
हाहा प्रिया तू किहां गई, अति ऊतावलि एह । विरह खम्यो जायइ नहीं, मुझन दरसण देहि || प्राण छूटई तो बाहिरा, तूं मुझ जीवन प्राण । तुझ पाखइ जीवुं नहीं, भावई जांणि म जाणि ॥ ३
रावण के शस्त्र से मृतप्रायः लक्ष्मण को देखकर राम की मन स्थिति का जो चित्रण कवि ने किया है,× उसे पढ़कर तो पाठक शोकाकुल होकर आँसू बहाने को विवश हो जाता है । लक्ष्मण के निधन पर रानियों का प्रलाप तथा शंबूक के वध पर चन्द्रनखा काविला एवं रावण की मृत्यु पर मन्दोदरी आदि रानियों का रुदन तो इतना अधिक करुणा से अभिभूत है कि पाषाण हृदय भी पिघल जाता है। प्रस्तुत है, लक्ष्मण की रानियों द्वारा किये गये करुण - प्रलाप से संबंधित एक पद्य
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१. श्री मरुदेवी माता गीतम् (२-७)
२. द्रौपदी - चौपाई (१.१०.३-४)
३. सीताराम - चौपाई (५.८. दूहा २, ४) ४. द्रष्टव्य - सीताराम - चौपाई (६.५.१७-२८)
५. वही (९.५)
६. द्रष्टव्य वही (५.३)
७. द्रष्टव्य – वही (७.३.८-१२)
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