Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
हा रंग रलिआं, हो रंग रलिआं। नलदवदन्ती बेऊँ मिलियां । कुंबडउ हुकम लेई नई हरसई। कुमरी हीयऊँ हाथसुंफरसई॥ ततषिण रोम राय तनु विहसी। दवदन्ती नी छाती उलसी॥ कहई दवदन्ती प्रिय तुं जाण्यऊ। कूबड़उ हाथ झाली नई ताण्यऊ॥ प्रीतम अब तुंनइ नहि छोडुं । तुजसुं जोर करी प्रीति जोड्॥ नलनई हे जि मिली दवदंती। प्रीतम प्रेम नजरि निरती। हिव हुआ आणंद लील विलासा। रोम-रोम प्रगट्या प्रेम उलासा॥
बारे बर से जे दुख सहि या । ते नहु बीसरिया सुख लहिआ॥
सुकुमालिका का विवाह सागरदत्त से होता है। सुकुमालिका उससे भोग भोगना चाहती है। उसकी मिलन-उत्सुकता को कवि ने एक सहज भाव से अभिव्यक्त किया है -
भरतार सुं सुख भोगवू रे हंस घणी घणउ हेज रे। सुण हइ सखर समारीयउ रे, सखरी सजी सुख सेज रे। दीवा कीधा तिहाँ दीपता रे, फूटरी पहिरी फूलमाल रे।
परिमल महकइ महुल मइ रे, वारु गंघोटी विचाल रे॥२
राह में चकवी को चकवे के विरह में व्यथित देख राजा पवनंजय को अपनी पत्नी के प्रति प्रेम जाग्रत होता है। वह वहीं से लौटता है और चुपचाप अञ्जना से मिलने चला जाता है। कवि ने दोनों के संभोग-शृंगार का कितना संयमित एवं संक्षिप्त वर्णन किया है
राति छानउ पाछउ आयउ, अञ्जनासुन्दरी सुं सुख पायउ॥३
राजा शतानीक अपनी रानी मृगावती का दोहद पूर्ण करने के लिए उसके साथ सरोवर में स्नान करता है। इस सुखद संयोग में रानी मानस-हंस-सी तैरकर परमानन्द प्राप्त करती है। कवि की निम्नांकित पंक्तियाँ इस रोचक प्रसंग को उद्घाटित करती हैं -
गीतगान करइ गोरडी, अद्भुत सर्व उपाय। चतुरंग सेना परवर्यउ, साथि सतानीक राय॥ आवी राणी बावड़ी अति सुन्दर सोपान।
राणी पइठी झीलिवा, मानस हंस समान ॥ इसी तरह संयोग-शृंगार में ओतप्रोत करने वाले एक-दो और उदाहरण देखें। मदनरेखा जब गर्भ धारण करती है, तब वह स्वप्न में चन्द्र-दर्शन करती है। वह रात्रि में ही १. नलदवदन्ती-रास (५.५.१०-१३, २०-२२) २. द्रौपदी-चौपाई (१.९.१,८) ३. अञ्जना सती गीतम् (५) ४. मृगावती-रास (१.४.९-१०)
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