Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व भोज ने ' शृंगारमेव रसनाद्रसमामनाम ः १ घोषित कर इस रसनीयता के आधार पर ही श्रृंगार को एकमात्र रस माना है। इसके भेद-उपभेदों की भी अत्यधिक विस्तार से चर्चा हुई है। डा० नागेन्द्र ने शृंगार रस के ५२ उपभेदों का विवेचन किया है; लेकिन मुख्यतः इसके दो भेद किये गये हैं
१. संयोग- श्रृंगार और २. विप्रलम्भ - श्रृंगार ।
नायक-नायिका के संयोग के समय जो रति हो, वह संयोग श्रृंगार है और वियोग- काल में जिस रति का आविर्भाव हो, वह विप्रलम्भ - श्रृंगार है ।
महाकवि समयसुन्दर के साहित्य में हमें शृंगार रस के अनेक मनोहारी चित्र तथा मार्मिक प्रसंग उपलब्ध होते हैं । अध्यात्म - प्रधान साहित्य में शृंगार रस की सशक्त शब्दों में अभिव्यञ्जना, समयसुन्दर की अपनी विशेषता है; लेकिन उनका श्रृंगार रस रीतिकालीन श्रृंगार की तरह अश्लील न होकर संयमित और स्वाभाविक है । उदाहरणार्थ, गर्भवती सीता का कवि ने कितना सजीव एवं अकृत्रिम चित्रण किया है
वज्रजंघ राजा घरे, रहती सीता नारि । गर्भ लिंग परगट थयो, पांडुर गाल प्रकारि ॥ थणमुख श्यामपणो थयो, गुरु नितंब गति मंद । नयन सनेहाला थया, मुखि अमृत रसबिंद ॥ ३
कवि ने शृंगार के दोनों पक्षों - संयोग और वियोग को अपनी रचनाओं में पर्याप्त स्थान दिया है।
१.१.१ संयोग - शृंगार
संयोग-पक्ष के अनेक उत्कृष्ट चित्र आलोच्य रचनाओं में उपलब्ध होते हैं । संयोग- शृंगार का चित्रण मुख्यतया वहाँ हुआ है, जहाँ संयम ग्रहण करने से पूर्व नायक या नायिका भौतिक और लौकिक भोगों में अनुरक्त है अथवा उनके दीर्घ विरह के समाप्त होने पर मिलाप हुआ है ।
दमयन्ती बारह वर्षों से पतिवियोग की व्यथा सहन कर रही थी। एक बार दधिपर्ण राजा के संग आए कूबड़ रूपधारी नल से दमयन्ती का स्पर्श हो जाने से दमयन्ती को रोमांच हुआ । नल का रूप प्रकट होने पर दोनों जल-धाराओं के संगम की तरह एक हो गये । कवि ने इसका चित्तहारी चित्रण किया है.
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१. उद्धृत – रससिद्धान्त, पृष्ठ २५७
२. रससिद्धान्त, पृष्ठ २४६-२४८ ३. सीताराम - चौपाई (८.४ दूहा १-२ )
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