Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की भाषा ३१. क्षमा-छत्तीसी
३२. कर्म-छत्तीसी ३३. पुण्य-छत्तीसी
३४. सन्तोष-छत्तीसी ३५. दुष्काल-वर्णन-छत्तीसी ३६. सवैया-छत्तीसी
और लगभग ५०० फुटकर गीत। २.३ गद्य-पद्य मिश्रित शैली
___ महोपाध्याय समयसुन्दर की 'कालिकाचार्य कथा' आदि रचनाएँ गद्य शैली में निबद्ध होते हुए भी पद्य मिश्रित है। यद्यपि कवि ने ऐसी कोई रचना नहीं लिखी जो आद्यन्त गद्य-पद्य मिश्रित शैली में हो, लेकिन उन रचनाओं के अन्तर्गत ऐसे अनेक गद्यांश है, जो इस शैली से प्रभावित हों। ऐसे गधों में कवि ने कुछ भाव या भावनाएँ ऐसी कवित्वपूर्ण सुन्दरता से व्यक्त की हैं कि उनमें काव्य की-सी संवेदनशीलता तथा सरसता आ गई है। उदाहरणार्थ एक गद्यांश उद्धृत है -
अनेकगणनायक दण्डनायक मण्डलीक महामण्डलीक सामन्त महासामन्त चउरासिया, मुहता मुगटवर्द्धक संधिपाल दूतपाल सइगरणा वइगरणा देवगरणा यमगरणा संधिविग्रही सेठ सेनापति सार्थवाह व्यवहारिया अंगरक्षक पुरोहित वृत्तिनायक भारवाहक थईयायत पडुपडियायत टाकटमाली इन्द्रजाली फूलमाली यन्त्रवादी तन्त्रवादी मन्त्रवादी धर्मवादी ज्योतिर्वादी धनुर्वादी दंडधर खङ्गधर धनुर्धर चामरधर दीवाधर पुस्तकधर प्रतीहार खबरदार गजपाल अश्वपाल अङ्गमर्दक आरक्षक साचाबोला कथाबोला गुणबोला समस्याबोला साहित्यबंधक लक्षणबंधक छन्दबन्धक अलङ्कारबन्धक नाटकबन्धक गीतबन्धक इत्यादि वर्णकविराजिता।
ऊपर हमने महाकवि समयसुन्दर की तीन मुख्य भाषा-शैलियों का संक्षिप्त उल्लेख किया है। चूंकि रचना के वर्ण्य-विषय आदि पर भी शैली का स्वरूप अवलम्बित होता है, अतः उसकी भी चर्चा करना नितान्त अपरिहार्य है। इन विविध शैलियों के आधार पर ही उनकी गद्य-पद्य शैली को परिष्कृत अनुशीलनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है। विवेच्य साहित्य में जिन शैलियों के दर्शन होते हैं, वे इस प्रकार हैं - २.४ तार्किक शैली
समाचारी-शतक, विशेष-शतक, विसंवाद-शतक, विचार-शतक जैसे विशालकाय ग्रन्थ इसी शैली में आलेखित हैं। इस शैली में पण्डित समयसुन्दर किसी तथ्य, धारणा, विचार, विश्वास आदि की सत्यता जाँचने के लिए अथवा उसके समर्थन या विरोध में कोई तथ्यपूर्ण युक्तिसंगत तथा सुविचारित बात कहते हैं। वे प्रत्येक बात को तर्क-वितर्क के द्वारा गहराई से प्रस्तुत करते हैं। वे अपने विवेच्य विषय के अन्तस्तल तक पहुँच जाना चाहते हैं, ताकि सम्यक् निष्कर्ष निकल सके। १. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ १९९
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