Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का वर्णन-कौशल
कुहक बाँण छूटइ नालि गोला, बिंदूक वहइ बिडं पासे। रीठ पडइ मोगर खडगां री, अगनि ऊडइ आकासे॥ साम्हे धाए झूझइ सूरा, धड़ बिण राणी जाया। दल रावण रउ भाजत देखी, हत्थ विहत्थ भड धाया॥ तुरगी तुरगी सुं तरुयारे, रथी रथी सं प्रहारे ।
गजी गजी सुं जंग मंडाणो, पालिहार पालिहारे ॥१
वास्तव में 'सीताराम-चौपाई' में युद्ध की घटनाएँ स्थान-स्थान पर वर्णित हैं, यद्यपि उनमें विशेष नवीनता नहीं दिखाई देती है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि समयसुन्दर का युद्ध-वर्णन नीरस है या केवल परम्परा-पालन के लिए किया गया है, अपितु हर बार वे कुछ न कुछ नई विशेषता तो पैदा करते हैं। प्रस्तुत है, लव-कुश का राम-लक्ष्मण के साथ हुए युद्ध का वर्णन -
लागो सबल संग्राम, बेदल हो बेदल झूझइ नगरी बाहिरई हो। वहइ गोला नालि तीरे हो तीरे हो, वरसइ मेह तणी परइ हो । भाला मारइ भीम भा, भेदइ हो। भे० बगतर टोप विहुँ गमा हो। करि लंबकइ करिबालक क० कालइ हो, कालइ आभइ बीजलि ऊपमा हो। ऊडई लोहड़े अगि ऊ० हाथी हो, हा० पाडइ चीस चिहुं दिसा हो। हाक बूंब हुंकार, हा० सुभटा हो, सु० ऊपर सुभट पड़इ धस्या हो॥ अन्धारउ आकास, अ० छाया हो, छा० रवि ससी बहुली रज करी हो। बूहा रुधिर प्रवाह, बू० माऱ्या हो, माऱ्या माणस तिरजंच बहुपरी हो॥ पड़इ दमामां रोल, प० एकल हो, एकल घाई बाजइ ऊतावली हो। सिंधुड़इ वलि राग, सि० सरविं हो, सरणाइ चहचहइ भली हो॥ धरती नर संग्राम, ध० गयणे हो, ग० खेचर संग्राम तिम थयो हो ॥२
इसी तरह 'मृगावती चरित्र चौपाई' आदि रचनाओं में भी कवि ने युद्ध-वर्णन करते हुए अपना काव्य-कौशल दिखाया है। अन्त में हम चण्डप्रद्योत और द्विमुख के मध्य हुए युद्ध-वर्णन की अवतारणा कर रहे हैं, जिसमें युद्ध के साथ गज, अश्व, पायक, रथ आदि के वर्णनों का भी एक साथ दर्शन होता है -
चढ्यो रण झुझवा चंडप्रद्योत नृप, चढतरा तुरत वाजा वजाया, सुभट भट कटक झट मटकि भेला थया, वडवडा वेगीया वेगधाया।
१. सीताराम-चौपाई (६.४.१-३,११-१५,२९) १. सीताराम-चौपाई (८.६.१-६)
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