Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का वर्णन - कौशल
जिन - मन्दिर महोछव घणा, मण्डाव्या हे पूजा सतर प्रकार । नगरी अयोध्या एहवी सिणगारी हे सुरपुरी अवतार ॥ सुभट विद्याधर सहु मिल्या, सहु हरपया हे नगरी नर नार । ढोल दमामां दुडबड़ी, भेरि वाजइ हे भला भुंगल सार ॥ ताल कंसाल - नइ बांसुली, सरणाई हे चह चहइ सिरिकार । सर मंडल मादल घुमइ, वीणा बाजइ हे झालरि झणकार ॥ बत्रीस बद्ध नाटक पडइ, गीत गायइ हे गुणियण अतिचंग । बंदी जण जय-जय भणइ, रुडी बोलइ हे विरुदावली रंग ॥ आकास मारिग आवता, देखीनई हे लोक हरष अपार । पूरणकुंभ ले पदमिनी, बधावइ हे गायइ सोहलउ सार ॥
यह नगर-प्रवेश-वर्णन अत्यन्त सजीव लगता है। उस युग में राजा-महाराजाओं का नगर प्रवेशोत्सव कितने आनन्द और उत्साहपूर्वक सम्पन्न होता था, इसकी झलक हम उक्त वर्णन से सहजतः पा सकते हैं। नगर प्रवेश का उत्सव परम्परागत ढंग से होता है, अत: उसके वर्णन में भी किंचित् परम्परागतता का समावेश होना कृत्रिम नहीं है ।
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इसी तरह 'शांबप्रद्युम्न - चौपाई' में प्रद्युम्न का नगर-प्रवेश-उत्सव एवं 'मृगावतीचरित्र- चौपाई' में राजा शतानीक, रानी मृगावती और उसके पुत्र का नगर - प्रवेश-उत्सव अनेक विशेषताओं को लिए हुए है।
१२. आलेखन - वर्णन
'मृगावती - चरित्र - चौपाई' में कविवर ने एक महान् चित्रकार की चित्र आलेखनकला का वर्णन किया है। चित्रकार ने राजा शतानीक के राजमहलों में चौदह स्वप्न, अष्टमङ्गल, राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, शंकर, ब्रह्मा, श्रीकृष्ण, गणेश आदि के अत्यन्त मनोहर चित्रों का अंकन किया है। अवलोक्य है, कवि के द्वारा कृत उस चित्रांकन का वर्णन -
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चतुर चीतारउ रूप चीतरइ रे, राजमहल तणी भीत रे । न्यान विज्ञान वारु केलवइ रे, रंजिवा राजा नउ चीत रे ॥ चउद सुपन पहिला चीतर्या रे, चीतर्या आठ मंगलीक रे। राम सीता रूप चीतर्या रे, लखमण राम निजीक रे ॥ वली रे वानर हनुमंत चीतर्यउ रे, जेहनउ लांबउ पूंछ रे । रूप वसिष्ट तणउ लिख्यउ रे, मोटी दाढ़ी मूंछ रे ॥ रूप लिख्यउ रावण तणउ रे, दस माथा जसु दीस रे । खङ्ग चंद्रहास जे हाथ में रे, श्रवणनयनभुज बीस रे ॥ १. सीताराम - चौपाई (७.६.१ - ८, १४ - १७)
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