Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ईसरनउ रूप चीतर्यउ रे, अहि आभ्रण रूंडमाल रे । चंद्रकला गंगा सिरइ रे, वृषभ वाहन कंठे माल रे ॥ रूप ब्रह्मा तणउ चीतर्यउ रे, चतुर्मुख बूढ़उ जटाल रे ॥ हाथ कमंडल जल भर्यउ रे, जनोई जपमाल रे ॥ रूप लिख्यउ श्रीकृष्णनउ रे, मुरली मनोहर श्याम रे । संख गदा चक्र हाथमइ रे, चतुर्भुज अति अभिराम रे ॥ चन्द्र सूरज नव ग्रह चीतर्या रे, चीतर्यंउ गणेशनउ रूप रे । पेट मोटउ सुंडि गज तणी रे, उंदिर वाहन अनूप रे ॥ भलानइ भारुंड पंखी चीतर्या रे, एक उदर गाबडि दोय रे । जुगति भखइ फल जूजुवा रे, जीव जुदा बेउ होय रे ॥ गरुड़ मयूर शुक सारिका रे, पंखी रूप अनेक रे निपुण चीतारइ सगला चीतर्या रे, वारू जाणइ विवेक रे ॥ मुगल काबिली सुधा चीतर्या रे, मुख राता चूची आंखि रे । माथइ मोटा पाघड ढूंमणा रे, ते जाणइ तीर नांखि रे ॥ रूप फिरंगी कीधा फूटरा रे, मोडइ माथइ टोप रे । ढीला पहिरइ सूथण कोथला रे, छेड्या करइ बहु कोप रे ॥ हबसी चीतर्या काला अति घणुं रे, पांडुर वरण पठाण रे । गरढ़ा काजी चीतर्या रे, बांचता कतेब कुराण रे ॥ पंचवरण आभा चीतर्या रे, चीतर्या पोलि प्राकार रे
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चतुर चीतारउ जाणपणुं घणुं रे, चीतर्या सकल प्रकार रे ॥१ उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने जो वर्णन किया है, उसमें कुछेक चित्रों, आकारों और प्रसंगों में काल-व्यतिक्रम दोष है। जैसे अन्तिम चार पद्यों में वर्णित मोगली, काबुली, फिरंगी, हबसी आदि का लगभग दो हजार पांच सौ वर्ष पूर्व की मृगावती के समय में चित्रांकन करना काल-व्यतिक्रम दोष ही माना जाएगा। यदि हम पूर्व - पर प्रसंग को ध्यान में रखते हुए विचार करें, तो किसी एक सीमा तक इनका प्रयोग अयोग्य नहीं है, क्योंकि चित्रकार को यक्ष- कृपा से ऐसी शक्ति प्राप्त थी, जिससे वह अनागत घटनाओं का चित्रांकन कर सकता था । कवि ने यह रचना आगरा में निर्मित की थी और उस समय आगरा में मुसलमान - शासकों का साम्राज्य था । अतः हमें तो यह लगता है कि कवि ने जो दृश्य अपनी आंखों के सामने दृष्टिगत किया था, उसी का चित्रांकन कर दिया है । अस्तु! वर्णन - कौशल की दृष्टि से देखें, तो उपर्युक्त वर्णन सरस है ।
१. मृगावती - चरित्र - चौपाई (२.५.२-१५)
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