Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का वर्णन - कौशल
कोटीधज विवहारिया, वसई लखेसरी साह | गीतगान गहगट घणां नरनारी उछाह ॥ १
एक और उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जिसमें कम्पिल नगर का वर्णन कवि की तत्कालीन संस्कृति पर किंचित् प्रकाश डालता है। वर्णन की सुगमता एवं अनायासा विशेष रूप से उल्लेखनीय है । यह वर्णन अन्य नगर-वर्णनों की अपेक्षा विलक्षण है हार बीच जिम पदक विराजे, तिम तिहां देश पंचाल री माइ । नगर कम्पला जाण नगीनो, रिद्ध समृद्ध रसाल री माइ ॥ देहरा विन किहां दण्ड न दीसे, लोक ने सबल असान री माइ । दीवा विण नहिं स्नेह तणो क्षय, हाट विना मान री माई ॥ सर्प विना नहिं को दो-जीभो, असि विण नहिं दृढ़मूठि री माइ । मांहों मांहे न द्यइ को केह ने धनुष विना निज पूठि री माइ ॥ अन्ध नहीं नारी वेणी विण, सारी विण नहिं भार री माइ । तर्क विना नहि वाद विवाद नगर मां, पुत्र विना नहिं नारी री माइ ॥ दान बिना को व्यसन न दीसे, धर्म बिना नहिं लोभ री माइ ।
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न्याय निपुण राजा धरमीजन, सुन्दर नगर ससोम री माइ ॥ २ इसी तरह कवि ने काशांबी, अयोध्या रे, चम्पानगरी आदि का भी परम्परागत
किन्तु अत्यन्त सुष्ठु वर्णन किया है। चम्पानगरी के वर्णन में कवि की समसामयिक सामाजिक स्थिति का भी उल्लेख हुआ है। कौशांबी का कवि ने जो वर्णन किया है, उसमें से दो पद उद्धृत करते हैं। देखिये, कितनी कुशलता से कवि ने नगर के दो अंगों की समृद्धि का वर्णन किया है -
१. सीताराम चौपाई ( ४.१ दूहा ९-११)
२. चार प्रत्येकबुद्ध चौपाई (२.१.३-७)
३. नलदवदन्ती रास (१.२.१ - १८ ) ४. चम्पक श्रेष्ठी चौपाई (१.१.१-२३) मृगावतीचरित्र - चौपाई (१.१)
५.
जमुना नदी बहइ जसु पासि, जाणि जलधि मुकी (क) हइ तास । रतन माहरा लींधा मथी द्यउ मुज तुज्झ अणूरति नथी ॥ प्रासाद सँग ऊपरि पूतली नेत्र नई कटि पातली । जाणिनगर रिधि जोवा भणी, अमर सुन्दरी आवी घणी ||
यद्यपि यह सत्य है कि इन वर्णनों में प्राचीन परम्परा का निर्वाह हुआ है, तथापि
उनमें तत्कालीन लोक-जीवन की झलक एवं देश की समृद्धि का आभास अवश्य मिलता
है ।
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