Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ३. वैभव-वर्णन
यों तो नगर वर्णन में उल्लिखित बातें नगरों की समृद्धि एवं वैभव का परिचय देती हैं, किन्तु कतिपय ऐसे भी वर्णन प्राप्त होते हैं, जिनमें विवेच्य वस्तु अथवा व्यक्ति के वैभव को ही प्रदर्शित करना प्रमुख है। जैसे - दशार्णभद्र भगवान् महावीर को वन्दन करने जाता है, उसका वैभव दर्शनीय है -
नगर सिणगार चतुरंग सेना सजी, पांच सइ महुल परिवार सेती। आप आगइ बतीस बद्ध नाटक पड़इ, तूर वाजइ कहूँ बात केती॥
परन्तु इन्द्र ने जिस ऐश्वर्य और शान के साथ जाकर प्रभु को वन्दन किया, वह तो विलक्षण है -
इन्द्र चउसट्टि एकठा मिली संस्तवइ, पार न लहइं तउ गान केहइ। एक हाथी तणइ आठ दंत सूला दन्त दन्त आठ आठ वावि सोहइ। वावि वावि आठ-आठ कमल तिहां, आठ आठ पांखड़ी पेखतां मनमोहइ। पत्र पत्रइ बत्तीस बद्य नाटक पड़इ, कमल बिचि इन्द्र बइठउ आनन्दइ। आठ वलि आगलिं अग्र महिषी खड़ी, वीर नई एण विध इन्द्र वांदइ ॥२
'चम्पक सेठ चौपाई' में चम्पक सेठ की ऋद्धि का विवरण देते हुए समयसुन्दर कहते हैं कि उसके ९६ कोटि मुद्राएँ निधान में, ९६ कोटि व्यापार में एवं ९६ कोटि ब्याज में लगती थी। उसके १००० वाहन, १००० शकट, १००० सप्त मन्जिल घर, १००० दुकानें, १००० भण्डशालाएँ, ५०० हाथी, ५०० अंगरक्षक, ५००० अश्व, ५००० सुभट, ५०० ऊँट, १०,००० पोठिये, १ लाख बैल, १०० गोकुल, १०,००० व्यापारी थे -
छिन्नू कोड़ि निधान गत, वलि छिन्नूं व्यापारन रे। छिन्नू वलि व्याजे फिरै, ऐ ऐ पुण्य प्रकारन रे॥ पुण्य तणा फल भोगवै, चम्पक सेठ सुजाणन रे। अचरिज सुणतां ऊपजै, पूरब पुण्य प्रमाणन रे॥ सहस वाहण वहै सासता,सहस वहै सकट नित्यन रे। सहस सेह सातभूमिया, सहस हाट पणि सत्यन रे॥ भांडशाला इस सहस ते, पाँच सै गज परवारन रे। पाँच सै सुभट पासे रहै, हय भण पांच हजारन रे॥ पांच सहस बीजा सुभट, पांच सै ऊँट प्रधान रे। दस हजार पणि पोठीया, लाख बलद नो गामन रे॥
१. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री दशार्णभद्र गीतम् (३) २. वही, श्री दशार्णभद्र गीतम् (४-६)
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