Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ६. नर्तकी वर्णन
नर्तकी शब्द नाचने का पेशा करने वाली तथा वेश्यावृत्ति करने वाली - दोनों स्त्रियों के लिए प्रयुक्त होता है। कविवर ने नर्तकी और वेश्या – दोनों का वर्णन किया है। वेश्या का वर्णन करते हुए वे कहते हैं -
वेश्या नी टोली रे मिली विलसती रूप रूड़ी रे हाँ रे वारू चतुर चउसठि कला जाण। कंचन वरण तनु कामिनी, बोलति अमृत वाणि॥ रंगीली रे वंगीली रे, जीवन लहरे जाइ। गजगति चालइ गोरी मलपंती, विभ्रम लील विलास।
लोचन अणियाला लोभी लागणा, पुरुष बंधण मृग पास॥१ नृत्य और नर्तकी दोनों का मनोहर चित्रांकन किया गया है, यथा -
राजा हुकम कीयो नाटक कउ, नटुई बाल कुमारि। चंदबदन मृगलोयणि कायिणी, पगि झांझर झणकार ॥ ततत्थेई नाचत नटुई नारि, पहिऱ्या सोल शृंगार। राम नायक मन रंगी नचावते, अपछर के अणुहारि॥ गीत गान मधुर ध्वनि गावति, संगीत के अनुहारि। हाव भाव हस्तक देखावति, उर मोतिण कउ हार॥ सीस फूल काने दो कुण्डल, तिलक कीयो अतिसार । नकवेसर नाचति नक ऊपरि, हुं सबमई सिरदार ॥ ताल खाव बजावति बांसुली, अरु मादल धोंकार। अंग भंग देसी देखावत, भमरी धइ बार-बार ॥ ताल उपरि पद ठावति पदमिनि, कटि पातलि थणभार। रतन जड़ित कंचूकी कस बांधति, ऊपरि ओढ़णिसार ।। चरणाचीरि चिहूँ दिसि फरकइ, सोलसज्या सिणगार।
मुख मुलकति चलति गति मलपति, निरखति नजरि विकार ॥२ ७. स्वयंवर-मंडप-वर्णन
प्राचीन काल में ऐसे उत्सव या समारोह भी होते थे, जिनमें कन्या स्वयं उपस्थित व्यक्तियों में से अपने लिए वर का वरण करती थी। समयसुन्दर की कुछेक नायिकायें स्वयंवर करती हैं। इसके लिए एक समारोह आयोजित किया जाता है। जिस स्थान अथवा मंडप में ये समारोह होता है, उसका कविवर ने प्रकृष्ट वर्णन किया है। १. वल्कलचीरी-चौपाई २. सीताराम-चौपाई (४.५.१-७)
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