Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सहायता ली है, तथापि उन स्थानों में सुन्दरतम कल्पना की सृष्टि हुई है। नीचे हम कुछ चुने हुए नख-शिखों को उपस्थित कर रहे हैं -
'मृगावती चरित्र-चौपाई' में कवि ने मृगावती के देहलावण्य का वर्णन किया है। मृगावती ने अपने सुनहरे बालों को दोनों तरफ इस तरह से गूंथे थे कि मानो मिथ्यात्व रूपी अन्धकार को उसमें बान्ध लिया था। (मिथ्यात्व समाप्त होने पर सम्यक्त्व प्रकट होता है।) भाल के ऊपर बीच में लगा सिन्दूर ऐसा लग रहा था, मानो धर्मसूर्य उदित हुआ है। उसके नयन-कमल की पंखुड़ियाँ अणियाली एवं उसके सौन्दर्य के अनुरूप थीं। उसके नयनरूपी कमल की पंखुड़ियाँ हठ करके आगे बढ़ने से रुक गईं, क्योंकि यदि आगे बढ़े तो वहां श्रवण रूपी दो कूप थे। कर्ण-कूप देखकर भय के मारे वह वहीं स्थिर हो गयीं। मृगावती की नासिका की तिर्यक् आकृति दीप-ज्योति के समान थी; किन्तु नासिका और दीपक में अन्तर परिलक्षित होता था। दीपक में तेल जलता है और कालिमा भी निकलती है, लेकिन मृगावती के नासिका रूपी दीपक में न तो तेल जलता है और न ही कालिमा दिखाई देती है। मृगावती का कण्ठ कोकिल के कण्ठ से भी अच्छा था। कोकिल का कण्ठ तो केवल वसन्त ऋतु में ही सुमधुर होता है, जबकि मृगावती का कण्ठ तो बारहों महीने सुमधुर होता है। कण्ठ के उपरान्त रूप के संबंध में तो दोनों में अनन्त अन्तर है। कविवर ने मृगावती के नख-शिख का वर्णन इस प्रकार किया है -
स्याम वेणी दण्ड सोभतउ रे, ऊपरि राखडि ओप रे मृगावती, अहि रूप देखण आवियउ रे लाल, मस्तकि मणि आटोप रे। बिहुं गमा गुंथी मीढली रे, बान्ध्यउ तिमर मिथ्यात रे मृगावती, विचि समथउ सिंदूरीयउ रे लाल, प्रगट्यउ धरम प्रभात रे। ससि दल भालि जीतउ थकउ रे, सेवइ ईसर देव रे मृगावती, गंगा तटि तपस्या करइ रे लाल, चिंतातुर नितमेव रे मृगावती। नयन कमलनी पांखड़ी रे, अणिआली अनुरूप रे मृगावती, हठि वधती हटकी रही रे लाल, देखि श्रवण को कूप रे मृगावती। निरमल तीखी नासिका रे, जाणे दीवा धार रे मृगावती, कालिमां किहां दीसइ नहीं रे लाल, नबलइ स्नेह लगार रे मृगावती। अति रूयडी रदनावली रे, अधर प्रवाल विचाल रे मृगावती, सरसति वदन कमल वसइ रे लाल तनु, मोतियण की माल रे मृगावती। मुख पुनिम कउ चन्दलउ रे, वाणी अमृत समान रे मृगावती, कलंक दोष दूरि टल्यउ रे लाल, सील तणइ परभावि रे मृगावती। कंठ कोकिल थी रूडयउ रे, ते तउ एक वसंत रे मृगावती, ए बारे मास सारिखउ रे लाल, रूपई फेर अनन्त रे मृगावती।
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