Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व व्यग्रचित्त वन लांघियउ, चालि गया चीत्रउडि।
नाना विध वनराइ जिहाँ, चित्रांगदनी ठउडि॥१ रावण सीता को प्रसन्न करने के लिए उसे पुष्पक विमान में बैठाकर पुष्पगिरि के सुन्दर उद्यान में ले गया। उस उद्यान का चित्रण दर्शनीय है -
गयउ पुष्पगिरिनइ शृंगि, उद्यान तिहां अति चंग। नारेलनई नारिंग, बहु फणस चंपक चंग॥ बहु नागनई पुनाग, जिहां घणा सरला लाग। आसोग तिलक उत्तंग, सहकार वृक्ष सुरंग॥ कंचण तणा सोपान, जिहां जल अमृत समपान।
एहवी वावडी नीर, सीता मुंकी दिलगीर ॥२ प्रकृति-चित्रण में हाथी का चित्रण भी अनुपम है - मद मत्त गंडस्थल मद्य झरइ, भमरा भमरी चिहुँ पासि भमई। सिर लाल सिंदूर कीयउ सिणगार, सुंडा दंड उंचउ उलालइ नमइ॥ घणj घणणुं गल घंट बगइं गज गर्ज करइ जाणै मेघ घुमइं॥
कविवर ने प्राकृतिक वस्तुओं का मानवीकरण भी किया है। नल के दुःखों को देख पाना सूर्य के लिए भी असह्य है और इसीलिए वह अस्त हो जाता है -
सूरिज आथम्यउ हुँ नहीं रहुं रे। नल दुख देखस्यइ हुँ नहीं सहं रे॥४
जब नरेश शतानीक मृगावती की खोज में मलयाचल प्रदेश के तापस-आश्रम में पहुँचता है, तो प्रकृति उसका भव्यतम स्वागत और अभिवादन करती है -
पवन कंपाव्या ब्रछ नम्या, ते तुझ करइ प्रणाम। अभ्यागत आव्या भणी, विजय घणउ इण ठाम॥ कोयल करइं टहुकड़ा, मोर करइ किंगार।
स्वागत पूछइ तुझनइ, तरुवर पणि सुविचार ॥ वस्तुतः प्रकृति स्वयं अचेतन है, किन्तु कवि ने इसे चेतन बना दिया है। उदाहरणार्थ – 'तृष्णाष्टकम्' रचना में कवि ने अचेतन तृण को जिस रूप में चित्रित किया है, उससे ऐसा नहीं लगता है कि तृण मानव के समान सचेतन न हो -
१. सीताराम-चौपाई (३. दू. १२. ३-५) २. सीताराम-चौपाई (५.६.५१-५३) ३. नेमिनाथ सोहला गीतम् (२३) ४. नलदवदन्ती रास (२.३.४) ५. मृगावती-चौपाई (१.८.३-४)
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