Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का वर्णन-कौशल
३११ निर्मल नीर खंडोखली, झीले राज मराल।
प्रमदा सुं प्रेमे रमे, नाखे लाल गुलाल ॥१ वर्षा काल के सजीव वर्णन की कमनीयता भी उल्लेखनीय है -
आयो वर्षाकाल, चिहुं दिसि घटा उमटी ततकाल। गडडाट मेह गाजइ, जाणे नालि गोला बाजइ। कालइ आभइ, वीजलि झबकइ, विहरणी ना हीया द्रवकइ। पपीहा बोलइ, वाणिया धान वखार खोलइ। बोलइ मोर, दादूर करइ सोर। अंधार घोर, पइसइ चोर। कंदर्प करइ जोर, मानिनी स्त्री भर्तारनइ करइ निहोर। चन्द्रसूरिज बादले छाया, पंथिजन आप आपणा घरनइ धाया। राजहंस मानसरोवरभणी चाल्या, लोके वस्तुवाना वखारमइ घाल्या। बगपंगति सोहइ, इन्द्रधनुष चित्त मोहइ। आभ थयो रातउ, मेह थयो मातउ । मोदी छाँट आवइ, लोकानइ मन भावइ। झडी लागी, करसणीरी भाग्यदसा जागी। मूसलधारइ मेह बरसइ, पृथिवी उर्णपूर्ण करिवानइ तरसइ । बहइ प्रणाल, खलखलइ खाल। चूयइ ओरा, भीजइ वस्तुवाना बोरा। टबकइ परसाल, चिंचूयइ बाल। नदी आवी पूर, कडणिरा रुख भांजी करइ चकचूर । वहइ वाहला, लोक थया काहला। जूना ढूंढा पडइ, लोक ऊँचा चडइ। हालीए खेत्र खड्या, वाडिसुं सेढ़ा जड्या। मारग भागा, जे जिहां ते तिहां रहिवा लागा। प्रगट्या राता ममोला, धान थया सुंहगा मोला। नोली हरी उहडहीं, घणा हूया दूध नइ दही। नीपना घणा धान, सांभर्या धर्म नइ ध्यान । गयउ शेर, लोक करइ बकोर । गयउ दुकाल, आयउ दंदू दुकाल ॥२
यहाँ कवि ने न केवल वर्षाऋतु की शोभा का चित्रण किया है, वरन् उसके तज्जनित प्रभाव को भी दर्शाया है।
'बारहमासा' नामक रचना में समयसुन्दर ने समस्त ऋतुओं एवं मानव-प्रकृति के ऊपर होने वाले उसके प्रभाव का भी अत्यन्त स्वाभाविक वर्णन किया है, जिसका उल्लेख हमने 'रस-परिपाक' में शृंगार-रस के अन्तर्गत किया है।
कविवर्य ने अपने काव्यों में प्राकृतिक सौन्दर्य को पुनः पुनः अभिव्यक्त किया है। राम, सीता और लक्ष्मण – तीनों एक गहन वन में से गुजरते हैं। कवि ने उस वन का वर्णन इस प्रकार किया है -
पंछी कोलाहल करई, सीह करइं गुंजार । केसरि कुम्भ विदारिया, गजमोती अंबार ॥ चिहुँ दिसि दीसई चीतरा, वलि दावानल दाह। वानर वोकारव करई, वनमइ विढइ वराह ॥
१. चारप्रत्येकबुद्ध चौपाई (२.४.१-६) २. कालिकाचार्य-कथा पृष्ठ २०४
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