Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
View full book text
________________
२८७
समयसुन्दर की भाषा २.१ गद्य-शैली
बोलचाल की भाषा में लिखने का यह वह प्रकार है, जिसमें अलंकार, मात्रा, वर्ण, लय आदि के बन्धन का विचार नहीं होता। कवि समयसुन्दर ने गद्य-शैली में प्रचुर साहित्य लिखा है। उनका अर्द्धाधिक साहित्य इसी शैली से निबद्ध है। उनकी गद्य-शैली सर्वत्र सरल और औचित्यपूर्ण है। यह बोलचाल की शैली से न तो बहुत दूर है और न बहत निकट ही। कवि की गद्य-शैली में जितनी सरलता और स्पष्टता है, वह उनकी पद्य शैली में नहीं है। इसमें तो वे अपने वर्ण्य-विषय से सीधे जुड़ जाते हैं और प्रसादमयी सरल भाषा में अपने विचारों को सहज रूप से अभिव्यक्त कर देते हैं। पद्य का बाह्य शब्दजाल, कल्पना की उड़ान आदि उनके गद्य में नहीं है। समयसुन्दर उसी भाषा-शैली को पसन्द करते हैं, जो पाठक के लिए दुर्बोध्य न हो। इसीलिए वे दार्शनिक ग्रन्थों की जटिल विषय-वस्तु को भी सरल से सरलतर रूप में प्रस्तुत करते हैं। यदि वे किसी अन्य ग्रन्थ से उद्धरण उद्धृत करते हैं और वह दुर्बोध्य अथवा सामान्य भी कठिन है, तो उसकी वे स्वयं व्याख्या कर देते हैं। यह ठीक है कि पद्य को कलात्मक माना गया है, किन्तु गद्यलेखन की अपनी विशेषता है। गद्य-लेखन को कवियों की कसौटी कहा है। गद्य सुन्दर हो तो, वह पद्य की अपेक्षा अधिक आवर्जक होता है। समयसुन्दर का गद्य लेखन दो प्रकार का है – १. शास्त्रीय गद्य और २. साहित्यिक गद्य । दर्शन विषयक ग्रन्थों में प्राप्य गद्य को शास्त्रीय गद्य और साहित्यिक ग्रन्थों के गद्य को साहित्यिक गद्य कह सकते हैं। कुल मिलाकर गद्य-शैली में महोपाध्याय समयसुन्दर ने निम्नलिखित ग्रन्थों की रचना की है१. अष्टलक्षी
२. चातुर्मासिक व्याख्यान ३. कालिकाचार्य-कथा
४. श्रावकाराधना ५. समाचारी-शतक
६. विशेष-शतक ७. विचार-शतक
८. यति-आराधना ९. विशेष-संग्रह
१०. दीक्षा-प्रतिष्ठा-शुद्धि ११. विसंवाद-शतक
१२. खरतरगच्छ-पट्टावली १३. कथा-कोश
१४. सारस्वत रहस्य १५. रूपकमाला-वृत्ति
१६. दुरियर स्तोत्र-वृत्ति १७. कल्पलता
१८. जयतिहुअण-वृत्ति | १९. भक्तामर सुबोधिनी वृत्ति २०. नवतत्त्व शब्दार्थ-वृत्ति २१. दशवैकालिक वृत्ति
२२. संदेह दोलावली पर्याय २३. रघुवंश वृत्ति
२४. वृत्त-रत्नाकर-वृत्ति २२५. सप्तस्मरण वृत्ति
२६. कल्याणमन्दिर-वृत्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org