Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व २.७ दृष्टान्त-शैली
विषय-वस्तु के सुस्पष्ट विवेचन के लिए दृष्टान्त-शैली अति लाभदायक है। इसके द्वारा वाचक को वाच्यार्थ आसानी से हृदयंगम हो सकता है। कवि समयसुन्दर की प्रतिपादन-शैली दृष्टान्तमयी भी है। वे अपने पाठक की बौद्धिक क्षमता से परिचित थे। अतः त्वरित बोधगम्यता के लिये उन्होंने विविध दृष्टान्तों, उपमाओं, उदाहरणों आदि का सहारा लिया। उनकी प्रतिपादन-शैली में दृष्टान्तों का प्रयोग वास्तव में मणि-कांचन का योग है। अधिकांशतः वे छोटे-मोटे दृष्टान्त प्रयुक्त करते हैं। ऐसे भी अनेक प्रयोग मिलते हैं, जहाँ वे एक ही मूल बात के निरूपण निमित्त बहुत बड़े दृष्टान्त देते हैं। कहीं-कहीं उन्होंने एक ही बात को अधिक स्पष्ट करने के लिए अनेक दृष्टान्त प्रयुक्त किये हैं। ये सभी दृष्टान्त प्रायः लोकप्रसिद्ध हैं।
_ 'चम्पक-श्रेष्ठी-चौपाई' में एक ओर पुरुषार्थ से भाग्य की रेख में मेख मारने हेतु और दूसरी ओर भाग्य की अमिटता बताने के लिये अलग-अलग दृष्टान्त दिये गये हैं। दोनों दृष्टान्त अपने-आप में पूर्ण व मार्मिक हैं, साथ ही बहुत बड़े भी हैं। दान-शील-तपभाव-संवाद शतक में भी दान-शील-तप-भाव - ये चारों अपनी बड़ाई को प्रकट करने के लिए अनेक दृष्टान्त देते हैं। कविवर का छत्तीसी-साहित्य दृष्टान्त-शैली में ही लिखित हैं। इनमें वे किसी एक तत्त्व को केन्द्रित करके उत्कर्ष-अपकर्ष को बताने के लिए विविध दृष्टान्त देते हैं। जैसे - 'पुण्य छत्तीसी'- इसमें कविवर ने पुण्य का सामान्य विवेचन करके विविध पुण्यात्माओं के दृष्टान्त दिये हैं। इसी प्रकार से अन्य रचनाओं के बारे में भी जानना चाहिये।
समयसुन्दर के सभी रास, चौपाई आदि किसी एक विस्तृत दृष्टान्त को ही कहते हैं। वे अपने प्रमुख पात्रों के जीवन में घटित सुख-दुःखात्मक घटनाओं का कारण प्रदर्शित करने के लिए भी केवली' द्वारा उनके गत जन्म का दृष्टान्त बताते हैं। इस तरह से हम देखते हैं कि कवि समयसुन्दर ने विविध प्रकार से दृष्टान्त शैली अपनाई है।
समयसुन्दर की दृष्टान्त शैली में पटुता देखने के लिए हम एक उदाहरण नीचे देते हैं, जिसमें राजीमति अपने पति नेमि के श्यामवर्णी होने पर भी उसे गुणों से सराबोर बताती है। वह कहती है, लोक में ऐसी अनेक वस्तुएँ हैं, जो श्यामवर्णी होते हुए भी प्रिय
सामलियउ नेमि सुहावइ रे सखियां,
कालउ पणि गुणभरियउ रे लखियां। आंखि सोहइ नहीं अंजण पारवइ,
कालउ मरिच कपूर नइ राखइ।
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