Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की भाषा
२८५ आव' (आओ), मिट्ठार (मीठा), वंजा (जाऊँ), असा (हम) इत्यादि शब्द आज भी सिन्धी में प्रचलित हैं। भावंदा (भाता है),लावां (लाऊँ), मइकुं" (मेरे को), कीता (किंया), चंगी' (अच्छा) आदि पंजाबी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। समयसुन्दर की सिन्धी सुस्पष्ट एवं पठन में रमणीय है।
२. भाषा शैली भाषा रूपी उपकरण के प्रयोग की विधि का नाम शैली है। भाषा और शैली, दोनों अन्योन्याश्रित हैं। भाव या विचार भाषा से अनुस्यूत होकर शैली के रूप में स्थिर होते हैं। पहले भाव एवं विचार उदित होते हैं, तब उनके अनुकूल भाषा बनती है और उसके पश्चात् भाषा की काया में शैली की प्राण-प्रतिष्ठा होती है। शैली विचारों को प्रकट करने का एक विशिष्ट ढंग है। साहित्य में, शैली के द्वारा साहित्यकार अथवा लेखक की प्रभावोत्पादकता तथा उत्कृष्टता का मूल्यांकन होता है। शैली वस्तुतः लेखक के मस्तिष्क
और व्यक्तित्व की मुहर है। डॉ० जे० ब्राउन ने लिखा है कि यदि भाव सोना है, तो शैली मुहर है, जो इसे प्रचलन योग्य बनाती है और यह बताती है कि किस राजा ने इसे मुद्रित किया है।१० शैली का अस्तित्व वस्तुतः इसमें निहित है कि यह प्रभावपूर्ण हो। उचित स्थल पर उचित शब्दों का प्रयोग- यही शैली की प्रभाविकता की पहचान है।
पौर्वात्य एवं पाश्चात्य रीतिशास्त्रियों ने शैली के भिन्न-भिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है। उन्होंने शैलियों के वर्गीकरण के लिए विविध आधार बनाये हैं; लेकिन वास्तविक दृष्टि से शैलियाँ अनन्त हैं, अभिव्यक्ति के मार्ग अनेक हैं । आचार्य दंडी ने कहा है, अस्त्येनेको गिरां मार्ग: सूक्ष्म भेदः परस्परम्। ११ यद्यपि दंडी स्वयं शैली के भेद कहते हैं, तथापि वे कहते हैं कि इनमें कविभेद से अनन्त अवान्तर प्रभेद हो सकते हैं और उन
१. वही, श्री आदिजिन स्तवनम् (७) २. वही, श्री आदिजिन स्तवनम् (२) ३. वही, श्री आदिजिन स्तवनम् (८) ४. वही, मृगावतीचरित्र-चौपाई (३.९.२) ५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री नेमिजिन स्तवनम् (१) ६. वही, श्री आदिजिन स्तवनम् (२) ७. वही, श्री नेमिजिन स्तवनम् (१) ८. वही, मृगावतीचरित्र-चौपाई (२.९.१) ९. वही, श्री आदिजिन स्तवनम् (५) १०. स्पेयर आवर्ज, थर्ड सिरीज, पृष्ठ २७७ ११. काव्यादर्श, १.४०
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