Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नारद मुनि ने द्वारिका के नागरिकों को जब यह सम्पूर्ण बात बतलाई, तो सभी चकित और प्रसन्न हुए।
उधर प्रद्युम्न सर्वविद्याओं में प्रवीण हो गया। उसके यौवन का विकास देखकर कनकमाला का चित्त विचलित हो उठा। उसने प्रद्युम्न से कहा कि मैं तेरी माता नहीं हूँ । यदि तुम मुझे ग्रहण करो, तो मैं तुम्हें प्रज्ञप्ति-विद्या सिखा सकती हूँ । प्रद्युत्र ने उससे विद्या सीखकर कहा कि तुमने मेरा लालन-पालन किया, इसलिए तुम मेरी मां हो और विद्याभ्यास करवाया, इसलिए गुरु भी हो। अतः तुम्हारे मुँह से यह बात अशोभनीय है । कनकमाला ने जब यह छल हुआ जाना, तो वह कुपित हो गई और उसने अपने केश बिखेर लिए, वस्त्र फाड़ लिए एवं प्रद्युम्न पर आक्षेप करती हुई विलाप करने लगी। कालसंवर ने जब यह दृष्टिपाल किया, तो वह प्रद्युम्न को मारने के लिए उद्यत हुआ। दोनों में युद्ध छिड़ गया, लेकिन प्रद्युम्न के आगे कालसंवर ठहर न सका । जब कालसंवर को उसकी ' प्रज्ञप्ति - विद्या' का पता लगा, तो वह अपनी पत्नी से अपनी विद्या मांगने गया । यथार्थ स्थिति ज्ञात होते ही कालसंवर ने युद्ध बन्द कर दिया। उसी समय नारद मुनि आ पहुँचे। उन्होंने प्रद्युम्न से कहा कि श्री कृष्ण की रानी रुक्मिणी तुम्हारी माता है। उसका सत्यभामा के साथ यह तय हुआ था कि जिसके पुत्र का विवाह पहले होगा, दूसरी केश उतार देगी, जो वधू के 'पड़ले' में चढ़ाये जायेंगे । सत्यभामा के पुत्र भानुकुमार का विवाह निश्चित हो गया है। अतएव तुम द्वारिका जाओ और अपनी माता की रक्षा करो।
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प्रद्युम्न ने कालसंवर से आज्ञा लेकर नारद के साथ द्वारिका नगरी हेतु आकाशमार्ग विमान द्वारा प्रस्थान किया। द्वारिका में उसने सैन्यरक्षित भानु की भावी पत्नी उदधिकुमारी का हरण कर अपने विमान में बैठा दिया। तत्पश्चात् प्रद्युम्न ने अपनी विद्याओं का प्रयोग करना शुरू किया। उसने एक बन्दर उत्पन्न किया, जिसने सत्यभामा के उद्यान को नष्ट कर डाला। उसके बाद प्रद्युम्न ने एक अश्व का आविर्भाव किया, जिसने खेतों को तृणरहित एवं कूपों को भी जलशून्य कर दिया। फिर प्रद्युम्न ब्राह्मण वेष धारण कर पंचांग लिए सत्यभामा के महल पर आया। उसने एक कुब्जा दासी को रूपवती बना दिया । सिद्धपुरुष जानकर सत्यभामा ने उसे आदरपूर्वक महल में बुलाया और भोजन कराना शुरू किया। यह प्रद्युम्न से बोली- 'हे प्रिय ! रानी रुक्मिणी अत्यधिक लावण्यवती है, अतः मेरे पति उसे ही चाहते हैं। यदि आप मुझे उससे अधिक लावण्यवती बना दें, तो आपका बहुत उपकार होगा।' प्रद्युम्न ने उसे इसका उपाय बतलाते हुए कहा कि यदि 'तुम सिर- मुण्डन करवाकर और केवल जीर्ण वस्त्र पहनकर 'रुण्डबुण्ड स्वाहा, रुण्डबुण्ड स्वाहा' - इस मन्त्र की एक माला जपोगी, तो तुम्हें मनोवांछित फल प्राप्त होगा ।' सत्यभामा ने उसे पेटभर भोजन कराया। जब प्रद्युम्न वैवाहिक भोजन की सम्पूर्ण सामग्री चट कर गया, एक दासी ने उसे राक्षस समझकर भगा दिया।
तो
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