Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की भाषा
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समयसुन्दर की भाषा का अनुशीलनात्मक अध्ययन
१. भाषा-परिचय २. भाषा-शैली
३. भाषा -शक्ति - इन तीन मुख्य शीर्षकों में रखकर किया जा रहा है।
१. भाषा-परिचय भाषा भिन्न-भिन्न प्रकार की संरचनाओं की एक व्यवस्था है। वाक्य उसकी सबसे बड़ी इकाई है। रूप (पद) वाक्य से छोटी इकाई है और ध्वनि उससे भी छोटी। वाक्यों की विशिष्ट प्रकार से की गई संरचना एवं व्यवस्था ही साहित्य का रूप ग्रहण करती है। समयसुन्दर भाषाविद् थे। उन्होंने 'रूपकमाला' नामक भाषा-शास्त्र पर अवचूरि भी लिखी थी।
महोपाध्याय समयसुन्दर का साहित्य अत्यन्त व्यापक है, साथ ही अनेक भाषाओं में निबद्ध है। उन्होंने निम्नलिखित भाषाओं में साहित्य लिखा है -
१.१ संस्कृत-भाषा १.२ प्राकृत-भाषा १.३ मरु-गूर्जर भाषा (प्राचीन हिन्दी) १.४ सिन्धी-भाषा
समयसुन्दर की उक्त चारों भाषाओं का समीक्षात्मक परिचय आगामी पृष्ठों में प्रस्तुत किया जा रहा है। १.१ संस्कृत भाषा
संस्कृत विश्व की एक प्राचीन एवं श्रेष्ठ भाषा मानी जाती है। यह भाषा किसी समय जीवन्त और लोक-व्यवहार की भाषा रही है और अनेक वर्षों तक यह भारतीय समाज एवं शासन की भाषा बनी रही। यद्यपि यह भाषा मूलतः उदीच्य बोलियों पर आधारित थी, परन्तु पूर्व, दक्षिण तथा मध्य भारत के सभी अंचलों पर भी इसका अत्यधिक प्रभाव रहा। इसीलिए इस भाषा का संगठन एक अखिल भारतीय भाषा के रूप में हुआ और सभी प्रदेशों के विद्वानों एवं लेखकों द्वारा यह पोषित तथा पल्लवित होती रही। भारत की सांस्कृतिक चेतना एवं सभ्य जनों के विचार-विमर्श का माध्यम यही भाषा बनी। जैन आचार्यों एवं मुनियों ने यद्यपि जनभाषा (प्राकृत) का उपयोग किया, किन्तु वे भी संस्कृत
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