Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ ६.१.४.१३ श्री पार्श्वजिन पंच कल्याणक लघु स्तवनम्
- यह स्तवन भगवान् पार्श्व के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान एवं मोक्ष - इन पाँच कल्याणकों से संबंधित है। इसमें ८ कड़ियाँ हैं, शेष में 'कलश' भी लिखित है। इसका रचना संवत् अनुपलब्ध है। ६.१.४.१४ श्री चिन्तामणि पार्श्वजिन स्तवन
___ इसमें कवि समयसुन्दर ने चिन्तामणि पार्श्वनाथ से अपनी विविध चिन्ताएँ दूर करने की विनती की है। यह विनती ७ कड़ियों में है। इसका रचना-काल अज्ञात है। ६.१.४.१५ श्री पार्श्वनाथ (प्रतिमा-स्थापन) स्तवन
'श्री पार्श्वजिन स्तवन' की ७ गाथाओं में जिनमूर्ति की महत्ता उद्घाटित करते हुए मूर्ति-विरोधकों पर मीठे व्यंग्य कसे गये हैं और भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है। इसका निर्माण-काल कवि ने नहीं लिखा है। ६.१.४.१६ अष्ट महाप्रातिहायगर्भित पार्श्वनाथ स्तवनम्
विवेच्य रचना में 'कलश' सहित ९ गाथाएँ हैं। इसमें देवों द्वारा रचित तीर्थङ्करों के आठ प्रातिहार्य के स्वरूप का निदर्शन है। ये प्रातिहार्य इन्द्रजाल रूप होते हैं । रचना का रचना-काल और रचना-स्थान अज्ञात है। ६.१.४.१७ श्री महावीर गीतम्
श्री महावीर गीतम् में ६ कड़ियाँ हैं। इसका रचना-काल अज्ञात है। इसमें कवि ने भगवान् महावीर की एक अन्य माता देवानन्दा का परिचय दिया है। भगवान् महावीर ८२ दिन देवानन्दा की कुक्षी में रहे थे। महावीर के कैवल्य प्राप्त कर लेने पर देवानन्दा उनके दर्शनार्थ गई थी। भगवती-सूत्र' में उल्लिखित इसी घटना का चित्रण प्रस्तुत गीत में किया गया है। ६.१.४.१८ श्री महावीरदेव षट्कल्याणक गर्भित स्तवनम्
प्रस्तुत स्तवन भगवान् महावीर के छ: कल्याणकों को मध्यस्थ बनाकर उनके जीवन-वृत्त को संक्षेप में प्रकट करता है। स्तवन की प्रथम ढाल में महावीर स्वामी के गर्भ, गर्भ-संहरण और जन्म - इन कल्याणकत्रय पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय ढाल में जन्म-कल्याणक-महोत्सव का सुन्दर वर्णन है। तृतीय ढाल में प्रभु के दीक्षा नामक चतुर्थ कल्याणक का उल्लेख है। चतुर्थ ढाल में महावीर के केवल ज्ञान और निर्वाण - इन दो कल्याणकों का विवेचन है। कृति के अन्त में 'कलश' के माध्यम से कृति का उपसंहार लिखा गया है। रचना का समय अनिर्दिष्ट है। ६.१.४.१९ अनागत चौबीसी स्तवन
प्रस्तुत रचना में कवि ने भावी चौबीस तीर्थङ्करों का नामोल्लेख करते हुए उन्हें नमस्कार किया है। यह रचना ६ कड़ियों में निबद्ध है। इसका रचना-काल ज्ञात नहीं हो पाया है।
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