Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
२३१ ६.३.३ श्री ढंढ़ण ऋषि गीतम्
श्री ढंढ़ण ऋषि गीतम् में दो ढालें हैं । प्रथम ढाल में १२ गाथाएँ हैं और द्वितीय ढाल में ९ गाथाएँ हैं । इस गीत की रचना वि० सं० १६८२, मार्गशीर्ष शुक्ला १ को पूर्ण हुई थी। प्रस्तुत गीत का विवेच्य विषय अधो-लिखित है -
द्वारिका नगरी में कृष्ण राज्य करते थे। एक बार भगवान् नेमिनाथ द्वारिका पधारे। कृष्ण अपनी १६ हजार पत्नियों सहित उनका उपदेश सुनने गये। रानी ढंढ़ण का पुत्र ढंढ़ण प्रतिबोध को प्राप्त हुआ और उसने दीक्षा धारण कर ली। लेकिन उन्हें अलाभपरीषह का काफी सामना करना पड़ा। ढंढ़ण ऋषि ने प्रभु से इसका कारण पूछा, तो प्रभु बोले - पूर्वभव में तुम एक अधिपति ब्राह्मण थे। तुमने अपने ५०० सेवकों (हालियों) के अन्न-जल में अन्तराय की थी। यह उसी का फल है, जो बिना भोगे नष्ट नहीं हो सकता। हे ढंढण! परीषह एक कसौटी है। प्रत्येक प्रतिकूल परिस्थिति को प्रसन्नतापूर्वक सहन कर लेना परीषह-जय है, तितिक्षा है। ढंढ़ण ऋषि परीषह विजेता बन गये। इन्हें भगवान् ने अपने संघ का सर्वश्रेष्ठ रत्न बतलाया। अन्त में इन्होंने कैवल्य प्राप्त कर मुक्ति का वरण किया। ६.३.४ श्री बाहुबलि गीतम्
'श्री बाहुबलि गीतम्' के रचना-काल का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। यह गीत ७ कड़ियों में है। इसमें कवि ने लिखा है कि राज्य-लोभी भरत पर प्रहार करने के लिए बाहुबलि ने मुष्टि उठाई, लेकिन प्रतिबोधित होकर संयम अंगीकार कर लिया। किन्तु बाहुबलि मद-गज पर आरूढ़ होने के कारण केवल ज्ञान न पा सके। भगवान् ऋषभदेव ने उन्हें उपदेश देने के लिए ब्राह्मी-सुन्दरी को भेजा। दोनों के इस कथन ने उन्हें केवलज्ञान दिला दिया -
वीरा म्हारा गज थकी ऊतरउ, गज चढ्यां केवल न होइ रे। ६.३.५ श्री शालिभद्र गीतम्
प्रस्तुत रचना का रचना-काल अनिर्दिष्ट है। इसमें १० कड़ियां हैं। इस गीत में कवि ने मुनि शालिभद्र का गुण-कीर्तन किया है। शालिभद्र का जीवन-वृत्त हम 'धन्नाशालिभद्र गीतम्' के अन्तर्गत वर्णित कर आए हैं। ६.३.६ श्री प्रसन्नचन्द्र राजर्षि गीतम्
प्रस्तुत गीत में ७ कड़ियाँ हैं। इसका रचना-काल अनुल्लिखित है। इसमें प्रसन्नचन्द्र राजर्षि के गुणों की स्तुति की गई है। राजर्षि का जीवन-चरित्र हम वल्कलचीरी चौपाई' के वर्ण्य-विषय में वर्णित कर आए हैं। ६.३.७ श्री मेतार्य ऋषि गीतम्
राजगृह नगर में एक स्वर्णकार के यहाँ मेतार्य मुनि भिक्षार्थ गये। स्वर्णकार घर
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