Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ६.७.१.२ सिन्धी भाषा में निबद्ध स्तवन ६.७.१.२.१ श्री नेमिजिन स्तवनम्
___ इस स्तवन में लिखा है कि नेमिनाथ विवाह-निमित्त राजुल के द्वार पर पहुँचे, परन्तु जैसे ही उन्होंने विवाह-भोज के लिए एकत्रित पशुओं की चीत्कार सुनी, वे करुणार्द्र होकर प्रव्रजित होने के निश्चय के साथ वापस लौट गये। कवि ने लिखा है कि प्रीति हो, तो नेमि-राजुल की तरह ही, जिन्होंने एक ही साथ मुक्ति प्राप्ति की।
प्रस्तुत स्तवन में ९ पद्य हैं। इसका रचना-काल अनुपलब्ध है। ६.७.२ कोशा के विरह-गीत
___ स्थूलिभद्र और कोशा से संबंधित विवेच्य रचनाओं में स्थूलिभद्र और कोशा वेश्या के प्रसिद्ध कथानक को लेकर स्थूलिभद्र की ब्रह्मचर्य-साधना का वर्णन किया गया है। कोशा ने स्थूलिभद्र को शील से च्युत करने के अनेक प्रयत्न किये, परन्तु उन्हें विचलित नहीं कर सकी और अन्त में स्थूलिभद्र के उपदेशों से उसने स्वयं शीलव्रत धारण कर लिया।
उपर्युक्त उपशीर्षकान्तर्गत समागत रचनाओं का परिचय इस प्रकार है - ६.७.२.१ श्री स्थूलिभद्र गीतम्
प्रस्तुत गीत में कोशा के विरह का ज्वलन्त चित्रण है। कोशा कहती है कि स्थूलिभद्र से वियोग हुए ६ मास १५ दिन हो गये हैं, अब उनके बिना मेरा जीवित रहना अशक्य हो गया है। कोशा की प्रियतम-मिलन की तीव्र उत्कण्ठा प्रस्तुत गीत में प्रकट हुई
इस गीत में ६ पद्य हैं। यह गीत अकबरपुर में मीरमोजा के शासन में वि० सं० १६८९ में रचा गया। ६.७.२.१ श्री स्थूलिभद्र गीतम्
___ इस गीत में कोशा कहती है कि परदेशी से प्रीति कभी नहीं करनी चाहिये, क्योंकि परदेशी का पुनः आना कठिन है। मैंने भी परदेशी से प्रीति की और अब विरहज्वाला में धधक रही हूँ। दिन में अन्न-जल ग्रहण न कर पाने के कारण दुःखी हूँ और रात्रि में नींद न आने के कारण। कोशा कहती है कि मैं अपने प्रेमी को पत्र भी नहीं लिख सकती, क्योंकि पत्र लिखते समय वह अश्रुनदी से आर्द्रित हो जाता है।
इस गीत के अन्त में कवि ने लिखा है कि स्थूलिभद्र जैसा प्रेमी प्राप्त होना अशक्य है, जो साधु बनने के पश्चात् भी अपनी प्रेमिका के घर आये और उसे प्रतिबोध देकर शील-चूनड़ी पहना गये।
इस गीत में ७ पद्य हैं। गीत का रचना-काल अज्ञात है।
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