Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ६.८.३.१३ मनोरथ गीतम्
'मनोरथ गीतम्' में आठ पद्य हैं। गीत में कवि ने अपनी आन्तरिक भावना व्यक्त करते हुए कहा है कि वह दिन कब आएगा, जब मैं सिद्धाचल की यात्रा करूँगा, तीर्थङ्कर के वचन सुनूँगा, सम्यक्त्व, समत्व और श्रमणत्व प्राप्त करूँगा, अरिहन्त के गुण-गान से निर्मल होऊँगा आदि। गीत का रचना-काल अनुल्लिखित है। ६.८.३.१४ मनारेथ गीतम् ।
कविवर चारित्र के प्रति दृढ़ आस्थावान् थे। प्रस्तुत गीत में कवि ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए लिखा है कि कब ऐसा अवसर आएगा, जब मैं निर्ग्रन्थ बनकर सम्यक प्रकार से मुनिचर्या का पालन करूँगा, शास्त्रनिर्दिष्ट शुद्ध गौचरी ग्रहण करूँगा, ममत्व का परित्याग कर उग्र विहार करूँगा, आत्म-निन्दा करूँगा, प्रमाद त्यागकर स्वाध्याय करूँगा, स्वादलोलुपता से दूर रहूँगा आदि।
गीत में ८ पद्य हैं। इसका रचना-काल अज्ञात है।
उक्त रचनाओं के अतिरिक्त निम्नांकित लघु रचनाएँ भी मिलती हैं - ६.८.३.१५ ज्ञान पञ्चमी लघु स्तवनम्
पद्य ५ ६.८.३.१६ श्री पर्युषण-पर्व गीतम्
पद्य३ ६.८.३.१७ श्री रोहिणी-तप-स्तवनम्
पद्य ५ ६.८.३.१८ गुरु दुःखित वचनम्
पद्य ५ ६.८.३.१९ मनोरथ गीतम्
पद्य ३ इस प्रकार हम देखते हैं कि समयसुन्दर का साहित्य बहुआयामी एवं बहुव्यापी है। शायद ही ऐसा कोई विषय हो, जिसे समयसुन्दर की साहित्यिक लेखनी ने नहीं छुआ हो। इनके विशाल साहित्य को देखते हुए लगता है कि जैनधर्म के ये दूसरे हेमचन्द्राचार्य हुए, क्योंकि हेमचन्द्राचार्य के पश्चात् प्रत्येक विषय पर मौलिक एवं टीका ग्रन्थों के रूप में इतने विपुल साहित्य का निर्माण करने वाला शायद ही कोई हुआ हो। .
___ समयसुन्दर का कृतित्व एक सागर की भाँति है, जिसका पार पाना कठिन-सा है। उनका साहित्य भारत के विविध जैन-ज्ञान-भण्डारों में उपलब्ध है। वास्तविकता हो यह है कि हमने जिस किसी भी ज्ञानभण्डार में समयसुन्दर के साहित्य के बारे में खोज की अथवा करवाई, वहीं हमें समयसुन्दर की रचनाओं के दर्शन हुए। हमें अनुसन्धान करते हुए जिस ढंग से कवि की रचनाएँ मिल रही हैं, उससे यह अनुमान लगता है कि उन्होंने हजारों रचनाएँ गुम्फित की होंगी। उनमें से कुछ काल-कवलित हो गयीं, कुछ उपलब्ध हैं और कुछ अभी भी ज्ञानभण्डारों में बन्द हैं । समयसुन्दर के प्रकीर्णक गीतसाहित्य के संबंध में परवर्ती कवियों का यह कथन प्रसिद्ध है -
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