Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
६.८.३.२ श्री पञ्च परमेष्ठी गीतम्
प्रस्तुत गीत का रचना - काल अवर्णित है । इस गीत में नवकार महामन्त्र की अचिन्त्य महिमा का वर्णन है । गीत में 5 कड़ियाँ हैं । ६.८.३.३ श्री जिनप्रतिमा पूजा गीतम्
प्रस्तुत गीत का वर्ण्य विषय प्रतिमा की पूजा को शास्त्रोक्त बताना है। इसके लिए कवि ने ‘रायपसेणी' एवं 'भगवती सूत्र' नामक ग्रन्थों का प्रमाण दिया है। उन्होंने रचना में मूर्त्तिपूजक महापुरुषों का नामोल्लेख भी किया है।
इस गीत में ९ कड़ियाँ हैं । इसका रचना - समय अज्ञात है।
६.८.३.४ शाश्वत जिनचैत्यप्रतिमा वृहत्स्तवनम्
'शाश्वत जिन चैत्य प्रतिमा वृहत्स्तवनम्' के प्रणयन का उद्देश्य जिनमन्दिर एवं जिनप्रतिमा के प्रति भक्ति प्रकट करना है । कवि ने जिनमन्दिर और जिनप्रतिमा की शाश्वतता को भी सिद्ध करने का प्रयास किया है । किन-किन तीर्थों में कितने जिनालय एवं उनमें कितनी प्रतिमाएँ हैं, इस पर कवि ने शास्त्रीय दृष्टि से प्रकाश डाला है। उन्होंने अपने वर्णन का आधार मुख्यरूप से 'जीवाभिगम सूत्र' बताया है। वे जिनप्रतिमा के सम्बन्ध में कहते हैं
जिन प्रतिमा बोली जिन सारखी, हितसुख मोक्ष निदानो जी । भवियण नइ भवसागर तारिवा, प्रवहण जेम प्रधानो जी ॥
प्रस्तुत स्तवन १९ कड़ियों में निबद्ध है। इसकी रचना के समय और स्थल का कवि ने उल्लेख नहीं किया है।
६.८.३.५ उपधान तप स्तवनम्
जैनधर्म में श्रावकों के तप एवं व्रतों में 'उपधान तप' प्रमुख माना जाता है। प्रस्तुत स्तवन इसी तप से सम्बन्धित है। यह स्तवन ३ ढालों में निबद्ध है। इसमें कुल १८ पद्य हैं।
प्रथम ढाल में कवि ने उपधान तप की आगम-सम्मतता तथा उपधान तप एवं उसके कर्त्ता का माहात्म्य बताया है। उत्तराध्ययन, महानिशीथ आदि ग्रन्थों में इस तप का उल्लेख हुआ है, ऐसा कवि ने लिखा है; लेकिन उत्तराध्ययन सूत्र में निर्दिष्ट 'बहुश्रुत' अध्ययन में इस तप का नामोल्लेख तक भी नहीं पाया गया है।
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द्वितीय ढाल में उपधान तप की विधि बतायी गयी है। तृतीय ढाल में उपधान
तप में करणीय और अकरणीय बातों का उल्लेख हुआ है।
स्तवन का रचना - काल एवं रचना स्थल, दोनों अज्ञात हैं ।
७.८.३.६ उपधान गीतम्
इस गीत में गुरु-पूजा एवं उपधान तप के माल- महोत्सव पर प्रकाश डाला गया
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