Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर की रचनाएँ
बाबा आदिम बाहूबल, वीर गौतम ज्यूं विलाप । मेल न सरज्यउ माहरो, ते तउ रह्यउ पछताय ॥ मूयइ कहइ ते मूढ़ तर, जीवइ जिणचन्द सूरि । जग जंपइ जस जेहनउ, हो पुहवि कीरत पडुरि ॥ गीत का रचना काल निर्दिष्ट नहीं है ।
६.५.२.१३ श्री जिनसिंहसूरि सपादष्टका
इसमें जिनसिंहसूरि की महिमा का अंकन करते हुए कवि ने जिनसिंहसूरि की लाहौर-पदार्पण से लेकर आचार्य पदारोहण पर्यन्त की सम्पूर्ण घटनाओं का आँखों-देखा चित्रण किया है, क्योंकि कविवर स्वयं उनके साथ थे। इस रचना से तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक आदि परिस्थितियों की भी जानकारी मिलती है ।
यह रचना ८ चतुष्पद में है। इसका प्रणयन-काल अनुल्लिखित है । ६.५.२.१४ श्री जिनसिंहसूरि चौमासा गीतम्
इसमें ४ षट्पद हैं। रचना का काल अनंकित है। इसमें जिनसिंहसूरि द्वारा एक चातुर्मास में किये गये शासन प्रभावक कार्यों की सूचना दी गई है। ६.५.२.१५ श्री जिनसिंहसूरि स्तवनम्
इसमें जिनसिंहसूरि के महान् व्यक्तित्व का निदर्शन है। स्तवन ६ कड़ियों में निबद्ध है। इसका रचना - काल अनुपलब्ध है । ६.५.२.१६ जिनसिंहसूरि गीतानि
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समयसुन्दर जिनसिंहसूरि के प्रति दृढ़ आस्थावान् थे । यही कारण है कि वे इस गीत के माध्यम से उनके दर्शन कर तथा प्रवचन सुनकर स्वयं को धन्य-धन्य मानते हैं । इसमें कवि ने कबीर की तरह ही गुरु के माहात्म्य पर प्रकाश डाला है
गुरु दीवउ गुरु चन्द्रमा रे, गुरु देखाइ वाट । गुरु उपगारी गुरु बड़ा रे, गुरु उतारइ घाट ॥
गीत ६ गाथाओं में है । इसका रचना - समय अज्ञात है ।
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६.५.२.१७ श्री जिनसिंहसूरि गीतानि
इस गीत में जिनसिंहसूरि की प्रतिभा, मन्त्री कर्मचन्द्र के निमन्त्रण पर लाहौर में पदार्पण, उनके द्वारा बादशाह अकबर को प्रभावित करना, अकबर के आग्रह से उसके साथ काश्मीर की ओर पद-विहार, उनके द्वारा हुई शासन - प्रभावना, एवं परीषह-सहन, अकबर के निवेदन पर जिनचन्द्रसूरि के स्वहस्त से आपको आचार्य-पद दिलाना, कर्मचन्द्र द्वारा किये गये पद - महोत्सव और सूरि का गार्हस्थिक परिचय इत्यादि का यथातथ्य निरूपण है।
गीतका रचना - काल असूचित है । गीत में ५ षट्पद हैं।
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